बालाघाट (ईन्यूज एमपी)- वर्तमान आधुनिक दौर में भी ग्रामीण स्तर पर ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं, जिनमें ग्रामीणों को समाज से बहिष्कृत किया जा रहा है। ऐसा ही मामला बालाघाट के लामता थाना क्षेत्र के मोतेगांव में सामने आया है। यहां दुर्गोत्सव में समिति द्वारा तय चंदा नहीं देने पर 14 परिवारों को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है।पीड़ितों ने एएसपी को ज्ञापन सौंपकर न्याय की गुहार लगाई है। मोतेगांव निवासी तिलक मसराम, रविंद्र मर्सकोले, देवेन्द्र कुमरे, रंजीत परते ने बताया कि दुर्गोत्सव के लिए 14 अक्टूबर को समिति की बैठक में सदस्य ओमप्रकाश बागरेश, संतोष बागरेश, नर्बद दौने समेत अन्य ने प्रत्येक घर से 200 रुपये चंदा देने का प्रस्ताव रखा था। आदिवासी समाज के लोग कोरोना संकटकाल को देखते हुए स्वेच्छा से 151 रुपये देने तैयार हुए थे, लेकिन समिति सदस्य 200 रुपये पर अड़े रहे। उन्होंने दबाव बनाकर 20 परिवारों से राशि भी जमा करवा ली। जो 14 परिवार नहीं दे पाए, उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया। किया जा रहा प्रताड़ित पीड़ितों ने बताया कि समाज से बहिष्कृत करने के साथ फैसला सुनाया कि गांव का कोई भी व्यक्ति न तो इन लोगों को से बात करेगा और न कोई लेन-देन करेगा। किराना, स्वास्थ्य संबंधी चीजों के साथ ही पूजा स्थल पर पूजा करने पर रोक लगा दी है। पीड़ित सोमजी परते, सुखचरण इनवाती लामता डिपो में 20 साल से मजदूरी कर रहे हैं। उन्हें काम से भगा दिया गया और कहा कि चंदा पूरा देना तब ही काम पर आना।