भोपाल (ईन्यूज एमपी)- वन अधिकार पट्टों का मामला अब निर्णायक स्थिति में आ गया है। राज्य सरकार पात्र हितग्राहियों को एक महीने में पट्टे देगी और अपात्रों को सख्ती से वनभूमि से हटाएगी। हालांकि इससे पहले सभी जिलों के कलेक्टर निरस्त आवेदनों का एक बार फिर परीक्षण कराएंगे और दस्तावेज मान्य होने पर हितग्राही का नाम पात्र की सूची में शामिल करेंगे। वनमंत्री विजय शाह पात्र हितग्राहियों को एक माह में पट्टे देने की घोषणा कर चुके हैं। वनभूमि पर काबिज लोगों को पट्टे देने का मामला फरवरी 2019 से अटका है। वर्ष 2017 में शिवराज सरकार इस मामले का निराकरण कर चुकी थी। जिलों में कलेक्टरों ने दस्तावेज और मौका मुआइना के आधार पर साढ़े पांच लाख में से तीन लाख 60 हजार 877 आवेदन निरस्त कर दिए थे। फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 11 राज्यों को अपात्र लोगों को वनभूमि से हटाने के निर्देश दिए थे। इस फैसले के खिलाफ कमल नाथ सरकार सुप्रीम कोर्ट में डबल बेंच के सामने गई और निरस्त आवेदनों का फिर से परीक्षण करने की अनुमति मांगी। कोर्ट ने फरवरी में ही छह माह का समय दिया था, पर सरकार को आवेदनों का परीक्षण कराने में डेढ़ साल लग गया। इसके लिए बाकायदा एक सॉफ्टवेयर खरीदा गया, जिसके माध्यम से एक बार फिर आवेदन मंगाए गए थे। चौथी बार में 99 फीसद आवेदन निरस्त चौथी बार के परीक्षण में 99 फीसद आवेदन निरस्त हो गए। विधानसभा उपचुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पट्टा वितरण की समीक्षा की थी, जिसमें मैदानी अधिकारियों को नाराजगी का सामना करना पड़ा था। चौहान ने पट्टे देने में अधिकारियों की मंशा पर सवाल खड़ा कर दिया था और आवेदनों का फिर से परीक्षण करने के निर्देश दिए थे। चौथी बार में तीन लाख 60 हजार 877 में से तीन लाख 58 हजार 339 पट्टे निरस्त हो गए हैं। इसमें सिर्फ 2538 आवेदन मान्य हुए हैं, जो एक फीसद भी नहीं है। आवेदन दे दिया, पर जमीन नहीं परीक्षण के दौरान यह भी सामने आया कि आवेदक ने पट्टे के लिए आवेदन तो दे दिया, पर मौके पर जमीन ही नहीं है। मसलन, आवेदक जिस जमीन का पट्टा मांग रहा है, उस पर कब्जा ही नहीं है। कुछ मामले ऐसे भी आए, जिनमें श्ाहरों में निवास कर रहे लोगों ने वनभूमि पर कब्जा दिखा दिया।