वाराणसी (ईन्यूज एमपी)-कार्तिक पूर्णिमा पर वाराणसी में देव दीपावली मनाई जाती है। सूर्यास्त होते गंगा के घाट दीपक की रोशनी से सराबोर हो उठे। जहां एक तरफ आसमान में पूर्णिमा के चांद की रोशनी ने अंधेरा दूर हो रहा है ,तो वहीं दूसरी ओर गंगा घाट पर दीपक के रुप में सजी माला की रोशनी ने मानो धरती से लेकर आकाश के बीच तक के अंधेरे को दूर करने का एहसास करा रही है। काशी के घाट पर देव दीपावली के अद्भुत नजारे को देखने के लिए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, केंद्रीय कौशल विकास व उद्यमिता मंत्री डॉ.महेन्द्र नाथ पाण्डेय के साथ ही देश-विदेश के कई वीवीआइपी व वीआइपी लोग आ चुकें हैं।काशी की देव दीपावली पर देश व विदेश से भारी संख्या में पर्यटक यहाँ की छटा को देखने के लिये कई दिन पहले से ही आ जाते हैं। दोपहर बाद से ही काशी के घाट पर लोगों की भीड़ उमड़नी शुरू हो गई और भगवान भास्कर अभी अस्त भी नहीं हुए थे कि घाट लोगों की भीड़ से पट गया है। सूर्योदय होने के पहले ही काशी के ८४ घाटों पर दीपक लगने शुरू हो गये थे। सूर्योदय होते ही हल्का अंधेरा छा गया था और जब दीपक को जलाया गया तो काशी के घाट रोशनी से नहा गये। मां गंगा के अविरल धारा में बहते हुए दीपक अनोखी छटा बिखेर रहे थे। पंचगंगा से लेकर दशाश्वमेध घाट पर इतनी भीड़ हुई कि लोगों का एक-घाट से दूसरे घाट पर जाना बहुत कठिन हो गया था। इस अवसर पर विभिन्न घाट पर लोगों ने जमकर आतिशबाजी भी की। देव दीपावली के अवसर पर तुलसी घाट पर आर्टिकल 370 हटने पर 50 फुट ऊंचा लालचौक का दृश्यांकन लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। महादेव शिव की नगरी काशी में देव दीपावली का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रिपुर राक्षस के आतंक से धरती से लेकर स्वर्ग तक में हाहाकार मच गया था। आम आदमी से लेकर देवता सभी लोग त्रिपुर राक्षस से त्रस्त हो गये थे। भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षस का वध करके सभी को आतंक से मुक्ति दिलायी थी, जिससे खुश होकर देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव की नगरी काशी में दीपक जला कर दीपावली मनायी थी। इसके बाद से ही कार्तिक पूर्णिमा की शाम को देव दीपावली मनाये जाने की परंपरा शुरू हुई।