नागपुर(ईन्यूज एमपी)- विजया दशमी के मौके पर मंगलवार को नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शस्त्र पूजा की। स्वयंसेवकों ने पथ संचलन किया। इस दौरान भागवत ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाकर सरकार ने साबित किया कि वह कठोर निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध है। लिंचिंग को लेकर उन्होंने कहा कि यह शब्द पश्चिमी देशों से हमारे यहां आया और हम पर थोपा जा रहा है। इसे लेकर भारत को दुनिया में बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। संघ का नाम लिंचिंग की घटनाओं से जोड़ा गया, जबकि संघ के स्वयंसेवकों का ऐसी घटनाओं से कोई संबंध नहीं होता। इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर एचसीएल के संस्थापक शिव नाडर, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौजूद रहे। भागवत ने सवयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का चुनाव दुनिया में सबके लिए रुचि का विषय है कि कैसे इतने बड़े चुनाव संपन्न कराए जा सकते हैं। लोग जानना चाहते थे कि 2014 में जो परिवर्तन आया था, वो क्या पिछली सरकार के लिए निगेटिव फॉलआउट था या फिर लोग खुद ही बदलाव चाहते थे। भागवत ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की उन्होंने कहा कि इस देश की जनता ने प्रत्यक्ष चुनाव के निर्णय लिए, इसके चलते वह परिपक्व हुई है। जनता ने 2014 की अपेक्षा इस बार सरकार को ज्यादा बहुमत दिया। यह भी साबित हुआ है कि सरकार अनुच्छेद 370 हटाने जैसा कठोर निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने यह फैसला लोकसभा और राज्यसभा में आमचर्चा के माध्यम से किया। सभी दलों ने इसे जो समर्थन दिया, प्रधानमंत्री का यह कार्य अभिनंदनीय है। देश के अंदर भी उग्रवादी हिंसा में कमी- भागवत भागवत ने कहा कि हमारी स्थल सीमा और जल सीमाओं पर सुरक्षा सतर्कता पहले से बेहतर है। केवल स्थल सीमा पर रक्षक और चौकियों की संख्या व जल सीमा पर (द्वीपों वाले टापुओं की) निगरानी बढ़ानी पड़ेगी। देश के अंदर भी उग्रवादी हिंसा में कमी आई है। उग्रवादियों के आत्मसमर्पण की संख्या भी बढ़ी है। पिछले कुछ सालों में भारत की सोच की दिशा में एक परिवर्तन आया है। उसको न चाहने वाले व्यक्ति दुनिया में भी हैं और भारत में भी। भारत को बढ़ता हुआ देखना जिनके स्वार्थों के लिए भय पैदा करता है, ऐसी शक्तियां भी भारत को दृढ़ता व शक्ति से संपन्न होने नहीं देना चाहती। ‘हमारे सामने कुछ संकट, जिनका उपाय करना है’ भागवत ने कहा कि मार्ग के रोड़े, बाधाएं और हमें रोकने की इच्छा रखने वाली शक्तियों के कारनामे अभी समाप्त नहीं हुए हैं। हमारे सामने कुछ संकट हैं जिनका उपाय हमें करना है। कुछ प्रश्न हैं, जिनके उत्तर हमें देने हैं और कुछ समस्याएं हैं, जिनका निदान कर हमें उन्हें सुलझाना है। सौभाग्य से हमारे देश के सुरक्षा सामर्थ्य की स्थिति, हमारे सेना की तैयारी, हमारे शासन की सुरक्षा नीति और हमारे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुशलता की स्थिति इस प्रकार की बनी है कि इस मामले में हम लोग सजग और आश्वस्त हैं। ‘‘समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में सद्भावना, संवाद और सहयोग बढ़ाने की कोशिश करते रहनी चाहिए। समाज के सभी वर्गों का सद्भाव, समरसता व सहयोग और कानून संविधान की मर्यादा में ही अपने मतों की अभिव्यक्ति यह आज की स्थिति में नितांत आवश्यक है। कानून-व्यवस्था की सीमा का उल्लंघन कर हिंसा की प्रवृत्ति समाज में परस्पर संबंधों को नष्ट कर अपना प्रताप दिखाती है। यह प्रवृत्ति हमारे देश की परंपरा नहीं है, न ही हमारे संविधान में यह बैठती है। कितना भी मतभेद हो, कानून और संविधान की मर्यादा के अंदर ही न्याय व्यवस्था में चलना पड़ेगा।’’ ‘कुछ बातों का फैसला कोर्ट से ही हो सकता है’ संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ बातों का निर्णय कोर्ट से ही होता है। फैसला कुछ भी हो आपस के सद्भाव को किसी भी बात से ठेस न पहुंचे ऐसी वाणी और कृति सभी जिम्मेदार नागरिकों की होनी चाहिए। यह जिम्मेदारी किसी एक समूह की नहीं बल्कि सभी की है। सभी को उसका पालन करना चाहिए। सभी मानकों में स्वनिर्भरता और देश में सबको रोजगार देनी की शक्ति रखने वाले ही अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंध बना सकते हैं, बढ़ा सकते हैं। साथ ही स्वयं सुरक्षित रहकर विश्वमानवता को भी एक सुरक्षित भविष्य दे सकते हैं। ‘पुरुषों को महिलाओं को देखनी की दृष्टि बदलनी होगी’ भागवत ने कहा, ‘‘पाठ्यक्रम से लेकर तो शिक्षकों के प्रशिक्षण तक सब बातों में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता लगती है। केवल ढांचागत परिवर्तनों से काम बनने वाला नहीं है। शिक्षा में इन सब बातों के अभाव के साथ हमारे देश में परिवारों में होने वाला संस्कारों का क्षरण और सामाजिक जीवन में मूल्य निष्ठा विरहित आचरण यह समाज जीवन में दो बहुत बड़ी समस्याएं उत्पन्न करने के लिए कारण बनता है। महिलाओं के सम्मान की रक्षा के लिए रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों का विषय बनने वाले भीषण संग्राम हुए, स्वयं की मान रक्षा हेतु जौहर जैसे बलिदान हुए, उस देश में आज हमारी माता बहनें न समाज में सुरक्षित, न परिवार में। महिलाओं को देखने की पुरुषों की दृष्टि में हमारी संस्कृति के पवित्रता व शालीनता के संस्कार भरने ही पड़ेंगे।’’