रायपुर(ईन्यूज एमपी)- छत्तीसगढ़ स्थापना के बाद से वन विभाग अपनी वानिकी के क्षेत्र में नित नई सफलता के सोपान चढ़ता जा रहा है। यहां की वानिकी को दूसरे प्रांत अपने यहां विकसित कर रहे हैं। यहां विदेशी मेहमान उद्योग की संभावनाएं तलाश रहे हैं पर विडंबना है कि पूरा वन अमला चाह कर भी अपने राजकीय पशु, पक्षी और वृक्ष को पूरी तरह सहेज नहीं पा रहा है। आलम यह है कि लाखों खर्च करने के बाद भी राजकीय पशु वन भैंसा, राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना व राजकीय वृक्ष साल अभी तक सेफ जोन में नहीं हैं। इनके लिए सरकार का प्रयास अभी तक आशातीत नहीं है। वर्तमान में तीनों ही दुर्दशा में हैं। कहने को सभी के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रयास जारी हैं, पर परिणाम वैसा नहीं है, जैसा होना चाहिए। तीनों के संरक्षण के लिए हो रहे कार्य मुख्य वन संरक्षक अरुण कुमार पांडेय का कहना है कि राजकीय पशु, पक्षी व वृक्ष तीनों के संरक्षण की दिशा में सरकार व वन विभाग प्रभावी कार्य कर रहे हैं। सभी को बचाने व उनकी संख्या बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। तीनों को बचाना और बढ़ाना पर्यावरण व प्रकृति से समन्यवन के साथ ही किया जा सकता है। इस दिशा में कार्य तेजी से हो रहा है। वन पट्टा भी कारण राजकीय पशु-पक्षी और वृक्ष के संरक्षण में आने वाली प्रमुख दिक्कतों में एक बाधा पट्टा भी है। विभागीय सूत्रों की मानें तो वन पट्टा आवंटन होने के कारण वनों का स्वरूप बन-बिगड़ रहा है। इस कारण वन्य जीवों का रहन-सहन प्रभावित हो रहा है। यदि वन पट्टा आवंटन को रोका जाए तो वन्य जीवों का जीवन संकट में नहीं आएगा और वन्य जीवों के कारण मानव जीवन भी खतरे में नहीं पड़ेगा। राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना का भी यही हाल है। जंगल सफारी में इसके लिए ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किए गए हैं पर अब तक संख्या बढ़ाई नहीं जा सकी है। राज्य सरकार को अब तक इस बात की स्पष्ट जानकारी भी नहीं है कि प्रदेश में कितनी पहाड़ी मैना बची हैं। हालांकि वन अनुसंधान संस्थान इस पर शोध कर रहा है, लेकिन परिणाम उत्साहजनक नहीं है। राजकीय पशु वन भैंसा को संरक्षित करने के लिए सरकार तरह-तरह के प्रयास कर रही है। प्रदेश में गिनती के ही वन भैंसा हैं। इसकी संख्या बढ़ाई नहीं जा सकी है। वन भैंसा की वंश वृद्धि के लिए एक क्लोन मादा वन भैंसा पंजाब से मंगाया गया है। राजकीय वृक्ष साल राजकीय वृक्ष साल की बात करेंतो यह बहुत दुर्दशा में है। जंगलों में अभी साल वृक्ष बचे हैं, लेकिन इनका पुनरउत्पादन नहीं होने से धीरे-धीरे समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है। हालांकि गोढ़ी नर्सरी के एसडीओ जेजे आचार्य का दावा है कि उनके यहां साल के पौधे विकसित किए जा रहे हैं, लकिन वन विभाग अपने पौधारोपण अभियान में इसे अब तक शामिल नहीं कर पाया है।