पंजाब सरकार के बठिंडा और रूपनगर थर्मल प्लांट बंद करने की घोषणा से राज्य में सियासी बवाल खड़ा हो गया है. विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और अकाली दल दोनों पार्टियों ने लोगों को भरोसा दिलाया था कि थर्मल प्लांट बंद नहीं होंगे, लेकिन अब हजारों करोड़ रुपये के घाटे की बात करके अचानक थर्मल प्लांट बंद कर दिए हैं. सालाना 1300 करोड़ रुपये के घाटे का दावा राज्य की कांग्रेस सरकार के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल के मुताबिक बठिंडा प्लांट से सरकार को सालाना 1300 करोड़ रुपए का घाटा हो रहा था. उनके मुताबिक बठिंडा थर्मल प्लांट में पैदा हो रही बिजली की लागत 11 रुपये प्रति यूनिट आ रही थी, जबकि खुले बाजार में बिजली महज ढाई रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से उपलब्ध है. सरकार का यह भी तर्क है कि कोयले की खदानें पंजाब से काफी दूर हैं, जिसके कारण बिजली उत्पादन महंगा हो गया था. उधर, थर्मल प्लांट के सहारे वोट बटोरने वाले अकाली दल ने कांग्रेस सरकार के फैसले को पंजाब विरोधी बताया है. पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि थर्मल प्लांट बंद होने से राज्य में बिजली का संकट गहरा सकता है. अकाली दल के अलावा आम आदमी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने भी पंजाब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और सरकार से मांग की है कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करें. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि राज्य सरकार के इस फैसले से 5000 से अधिक लोग बेरोजगार हो जाएंगे. हालांकि राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया है कि थर्मल प्लांट के किसी भी कर्मचारी की छंटनी नहीं होगी और कर्मचारियों को दूसरी जगह पर शिफ्ट किया जाएगा. गौरतलब है कि 1974 में स्थापित बठिंडा थर्मल प्लांट की मियाद पूरी हो चुकी है और पिछली अकाली-भाजपा सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस थर्मल प्लांट को बचाने के लिए 2012 से 2014 तक 700 करोड़ रुपये खर्च डाले थे.