मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जोर लगाया है। 2018 में आदिवासी वोट बैंक छिटकने से भाजपा के हाथ से सत्ता चली गई थी। उस समय सभी 47 आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा था। जिससे कांग्रेस 30 और भाजपा ने 16 सीटें जीती थी। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को विजय मिली थी। इस बार आरक्षित सीटों में सिर्फ 32 सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा है, जबकि 15 सीटों पर घट गया है। वहीं, 24 सीटों पर ही 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ है। इस स्थिति को देखते हुए दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने मंथन शुरू कर दिया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही मतदान प्रतिशत घटने से चिंतित हैं। प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार प्रभु पटैरिया का कहना है कि पिछली बार कांग्रेस का कर्जमाफी मुद्दा प्रभावी था। जिससे आदिवासी वर्ग भी घर से निकलकर वोट डालने प्रेरित हुआ। इस बार दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस के वादे बैलेंस हो गए। आदिवासी इलाकों में गोंडवाड़ा गणतंत्र पार्टी भी सक्रिय है। ऐसे में कम मतदान प्रतिशत से सत्ताधारी दल को फायदा मिल सकता है।