सीधी (ईन्यूज एमपी)-प्रदेश में प्रभावशील लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 मा. उच्च न्यायालय द्वारा अपने नियम दिनांक 30/04/2016 को असंवैधानिक पाये जाने पर अपास्त कर दिए थे। निर्णय के विरुद्ध मप्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई थी। मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उक्त अपील पर दिनांक 12/05/2016 को यथास्थिति के अंतरिम आदेश दिए थे और तभी से प्रदेश में पदोन्नतियाँ बाधित हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार उक्त अपील पर शीघ्र निर्णय की पहल न करते हुए नये पदोन्नति नियम 2022 का प्रारूप अधिसूचित करने की कार्यवाही करने जा रही है। ये नए नियम प्रारूप मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एम. नागराज प्रकरण तथा जरनैल सिंह प्रकरण में निर्दिष्ट सिद्धांतो के विपरीत हैं तथा मा. मंत्री समूह की बैठकों में इस संबंध में सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था अपनी स्पष्ट आपत्तियाँ जता चुका है। उक्त नियमों में मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की मूलधारणा की स्पष्ट अवमानना पुनः की जाकर पदोन्नति नियम 2002 को ही नए स्वरूप में लागू करने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है, जो कतई स्वीकार्य नहीं है। उक्त नियमों में - क्रीमीलेयर के सिद्धांत को पूरी तरह नकार दिया गया हैं। नियम लागू करने के पूर्व अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े एकत्रित कर यह स्थापित किया जाना था कि ऐसे नियमों की आवश्यकता हैं। ऐसे कोई भी आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये गए हैं।पर्याप्त प्रतिनिधित्व के सिद्धांत का कोई उल्लेख नहीं हैं, अर्थात इसका सदैव दुरूपयोग किया जाएगा। नियमों को लागू रखने की समय सीमा का कोई उल्लेख नहीं हैं। इस प्रकार मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित सिद्धांतो की घोर उपेक्षा की गई है। सरकार द्वारा नए नियम अधिसूचित करने की कार्यवाही का स्पष्ट आशय है कि सरकार द्वारा यह मान लिया है कि पुराने नियम 2002 असंवैधानिक है। अतः सरकार को चाहिए था कि वह मा. उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी अपील को वापस लेते हुए मा. उच्च न्यायालय के निर्णय का पालन करती तथा असंवैधानिक रूप से पदोन्नत आरक्षित वर्ग के कर्मियों को तत्काल प्रभाव से पदावनत करती। पर ऐसा न करते हुए सरकार पुनः अन्याय पूर्ण नए नियम बनाने की कार्यवाही कर रही हैं। जिससे मात्र आरक्षित वर्ग को ही लाभ होगा। सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था स्पीक नए नियमों के संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग को अपनी आपत्तियां प्रेषित कर चुकी है। इसके बाबजूद भी यदि उक्त नियम अधिसूचित किए जाते हैं, तो यह सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति घोर अन्याय होगा। वर्तमान में भी पूर्व पदोन्नति नियम 2002 के कारण सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारी व कर्मचारियों का अत्यधिक नुकसान हो चुका हैं एवं वे पूर्व से ही मानसिक रूप से प्रताड़ित हैं। यदि वर्तमान नियम प्रारूप अधिसूचित किये जाते हैं तो यह इन वर्गों के हितों पर पुनः कुठारघात होगा और यह स्पष्ट संदेश प्रसारित होगा कि सरकार सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति द्वेष रखती हैं और इनकी सतत उपेक्षा कर रही है एवं इस वर्ग का उन्मूलन करना चाहती है। ज्ञापन के माध्यम से स्पीक (सपाक्स) संस्था द्वारा निवेदन किया हैं कि तत्काल हस्तक्षेप कर ऐसे असंवैधानिक नियमों को अधिसूचित करने से रोका जाए एवं सभी वर्गों से सम्मानजनक न्यायपूर्ण व्यवहार करने वाले नियम जो कि मा. उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुरूप हो प्रभावशील करने की कार्यवाही की जाये। स्पीक संस्था द्वारा बताया गया है कि यदि सरकार द्वारा उक्तानुसार कार्यवाही नहीं की जाती है तो संस्था पुनः एक बार प्रदेशभर में विरोध स्वरूप बड़ा आंदोलन खड़ा करेगी। ज्ञापन कार्यक्रम मे प्रमुख रूप से डॉ अरुण सिंह चौहान जिला अध्यक्ष, शिवानंद शुक्ल कार्यकारी अध्यक्ष, राममोहन द्विवेदी सचिव, अजय कुमार श्रीवास्तव कोषाध्यक्ष, विंनोद कुमार दुबे नोडल, अनुराग मिश्रा संयोजक, विनय मिश्रा संयोजक, राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी सहायक संचालक महिला बाल बिकाश, रमाकांत द्विवेदी, शिवेंद्र सिंह, कृपाचार्य गौतम, दयाशंकर मनी त्रिपाठी, संकटमोचन त्रिपाठी, विंनोद पाठक, रामकृष्ण त्रिपाठी, आशा गुप्ता, यू.एस.डी. द्विवेदी, नरेंद्र सिंह सेंगर, चित्रसेन गौतम मुख्य लिपिक, रविशंकर पांडेय, विजय सिंह, देवेंद्र तिवारी, अशोक तिवारी, मनोज केवट, गणेश विस्वकर्मा नाजिर, आंनद तिवारी, राजबहोर पाठक, दयाशंकर पांडेय, अलकेश पांडेय, शिवशंकर सिंह, विंनोद तिवारी, रविशंकर तिवारी, डॉ मनीष शुक्ल, विश्वनाथ वर्मा, आशीष अग्निहोत्री, प्रीतम लाल साकेत, रामायण पनिका, उपस्थित रहे।