भोपाल(ईन्यूज एमपी)- मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भाजपा सरकार को पार्टी में असंतोष बढऩे का अंदेशा है। ऐसे में असंतुष्ट सांसदों और विधायकों को जिला सहकारी बैंकों में अध्यक्ष की कुर्सी देने की तैयारी की जा रही है। इनमें से कुछ अध्यक्षों को कैबिनेट या राज्यमंत्री का दर्जा दिया जा सकता है। सरकार इसके लिए मानसून सत्र में विधेयक लाकर कानून में संशोधन करने की तैयारी कर रही है। प्रदेश में 38 जिला सहाकारी बैंक हैं। इनमें से छतरपुर, सतना, सीहोर में अध्यक्ष पदस्थ हैं, जिनका कार्यकाल एक से दो साल तक है। जबकि पन्ना जिला सहकारी बैंक में अध्यक्ष पद को लेकर हाईकोर्ट का स्टे चल रहा है। इसके चलते प्रदेश के सांसद और विधायकों को 34 जिला सहकारी बैंकों, अपेक्स बैंक सहित अन्य सहकारी संस्थाओं में अध्यक्ष और प्रशासक बनाया जा सकेगा। सांसद-विधायक पहले भी इन बैंकों में सदस्य होते थे। इसके बाद सरकार ने इस एक्ट में संशोधन करते हुए इसे हटा दिया था। सदस्यता लेना जरूरी बैंकों में अध्यक्ष बनने से पहले विधायक और सांसदों को बैंक का प्राथमिक सदस्य बनना होगा। इसके लिए वे ऋणी और अऋणी सदस्य बन सकेंगे। बताया जाता है कि करीब 50 फीसदी अध्यक्ष विभिन्न जिला सहकारी बैंकों में अभी भी सदस्य हैं। जिनकी सदस्यता समाप्त हो गई है, वे नए सिरे से उसे जीवित करा सकेंगे। निर्वाचन के बाद होगी नियुक्ति बताया जाता है कि अध्यक्षों की नियुक्ति बैंकों के निर्वाचन के बाद की जा सकेगी। बैंक और सहकारी संस्थाओं के अध्यक्ष का पद लाभ का पद नहीं होने से इसमें सुप्रीम कोर्ट की दोहरे लाभ के पद की गाइडलाइन भी आड़े नहीं आएगी।