भोपाल (ईन्यूज एमपी)- मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी कांग्रेस किसी नए नेता को नहीं सौंपना चाहती है। उप चुनाव तक सरकार रहते कमल नाथ जिस तरह मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों थे, उसी तरह प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में भी रहेंगे। नए नेता प्रतिपक्ष के चयन से बचते हुए पार्टी उप चुनाव वाले क्षेत्रों में अपनी जीत के विश्वास का संदेश पहुंचाना चाहती है। पार्टी का मानना है कि मानसून सत्र केवल पांच दिन का है, जिसमें सरकार प्रदेश के बजट की औपचारिकता पूरी करेगी। विधानसभा का मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू होने वाला है, जो पांच दिन पांच बैठकों का होगा। सत्र को लेकर अभी विधानसभा में कई तैयारियां होना है। इसके लिए सत्ताधारी भाजपा के साथ प्रमुख विपक्षी दल की सहमति भी आवश्यक है। कोरोना वैश्विक महामारी के संक्रमण से बचाव के लिए विधायकों की बैठक के इंतजाम का मुद्दा हो या सदन में कार्यवाही के अन्य विषय, भाजपा के साथ कांग्रेस विधायक दल से विधानसभा सचिवालय को समन्वय बनाने की जरूरत होगी। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है और नेता प्रतिपक्ष के लिए विधानसभा उपचुनाव तक का इंतजार करने की रणनीति पर पार्टी चल रही है। उपचुनाव के बाद होगा फैसला बताया जाता है कि कमल नाथ नए नेता प्रतिपक्ष का चयन करने से बच रहे हैं। चर्चा में वे अपने आत्मविश्वास को जताने से नहीं चूक रहे हैं। उनका कहना है कि उपचुनाव तक इंतजार करें। उल्लेखनीय है कि नेता प्रतिपक्ष की सुविधाओं को लेने के लिए विधानसभा सचिवालय को सूचना देना होती है लेकिन कांग्रेस के विधायक दल के नेता पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ हैं। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से सुविधाएं मिल रही हैं, इसलिए कांग्रेस ने कमल नाथ के नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम करने की सूचना नहीं भेजी है। विधायक दल के नेता आज भी कमल नाथ कांग्रेस विधायकों ने सरकार बनने पर अपना नेता कमल नाथ को चुना था इसलिए कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सरकार गिरने के बाद भी विधायक दल के नेता तो तकनीकी रूप से वे ही रहेंगे। नेता प्रतिपक्ष के लिए विधानसभा सचिवालय को सूचना देने की जरूरत नहीं है क्योंकि जब कमल नाथ नेता प्रतिपक्ष की सुविधाएं लेंगे तब उसकी सूचना देने की आवश्यकता होगी।