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Home मध्य प्रदेश पंचायतों में अब नहीं बनेंगी ग्राम युवा शक्ति समितियां, कमलनाथ सरकार के फैसले पर फिर चली कैंची....

पंचायतों में अब नहीं बनेंगी ग्राम युवा शक्ति समितियां, कमलनाथ सरकार के फैसले पर फिर चली कैंची....

भोपाल (ईन्यूज एमपी)- प्रदेश की शिवराज सरकार ने कमल नाथ सरकार की एक और योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। पंचायतों में अब ग्राम युवा शक्ति समिति नहीं बनेंगी। कांग्रेस सरकार ने प्रत्येक पंचायत में 11 सदस्यीय समिति बनाने का फैसला किया था। इसे गांव में नशामुक्ति को बढ़ावा देने से लेकर विभिन्न योजनाओं का ग्रामीणों को लाभ दिलाने का जिम्मा सौंपा जाना था।

कमल नाथ सरकार ने गांव-गांव में युवाओं को जोड़ने के लिए ग्राम युवा शक्ति समिति बनाने का फैसला किया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि दो लाख 67 हजार 142 स्थानीय युवाओं का ऐसा तंत्र बनाया जाए, जो सरकार के आंख और कान हों। यही वजह थी कि प्रभारी मंत्रियों को यह जिम्मा सौंपा गया था कि वे स्थानीय विधायकों से समन्वय बनाकर समिति का गठन कराएं, लेकिन यह काम पूरा ही नहीं हो सका। कुछ जगहों पर समितियां बनीं भी पर वे क्रियाशील नहीं हो पाईं।

इस बीच प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया और पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सूत्रों का कहना हैं कि ज्यादातर जिलों में समितियों के गठन की प्रक्रिया ही पूरी नहीं हुई थी। प्रभारी मंत्री के माध्यम से समिति में मनोनयन के लिए नाम आने थे पर वे नहीं आए। सत्ता परिवर्तन के बाद इस योजना को लेकर अभी तक सरकार के स्तर पर कोई विचार-विमर्श नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि अब योजना आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। हालांकि, इसके औपचारिक आदेश होने अभी बाकी हैं।

उधर, पूर्व पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल का कहना है कि सरकार ने योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। कहीं भी समिति के गठन का काम नहीं हो रहा है, जबकि समिति के माध्यम से ग्रामीण विकास में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना हमारा उद्देश्य था। इसमें स्थानीय अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को सदस्य बनाया जाना था।

सदस्यों को मिलना था 1200 रुपये सालाना मानदेय

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि योजना में ग्राम युवा शक्ति समिति के सदस्यों का कार्यकाल पांच साल तय किया गया था। सदस्यों को प्रति बैठक तीन सौ रुपये मानदेय के हिसाब से चार बैठकों के लिए सालाना 12 सौ रुपये मानदेन मिलता। बेहतर काम करने वाली समिति को दो लाख रुपये का पुरस्कार देने की व्यवस्था भी रखी गई थी।

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