दिल्ली(ईन्यूज एमपी)-घर में घुसकर लूटपाट और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाए एक शख्स काे सुप्रीम काेर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी के पास चोरी का सामान मिलने का यह मतलब नहीं कि हत्यारा वही है। हत्या का अपराध साबित करने के लिए चश्मदीद गवाह या ठोस सबूत हाेने चाहिए। औराेपी काे निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे हाई काेर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने संदेह का लाभ देकर उम्रकैद की सजा रद्द करते हुए उसे बरी कर दिया। जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की बेंच ने फैसले में कहा कि मप्र हाई कोर्ट ने यह अहम तथ्य दरकिनार किया कि अाराेपी सोनू उर्फ सुनील से मृतक का मोबाइल वारदात के दो महीने के बाद मिला था। दो महीने में ताे चोरी का मोबाइल कई लोगों तक पहुंच सकता है। पुलिस उसके खिलाफ मोबाइल बरामदगी के अलावा एेसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई, जिससे उसकी अपराध में संलिप्तता साबित हो। यह था पूरा मामला डबरा के बिलौआ गांव में सितंबर 2008 में लूटपाट के बाद भरोसीलाल नाम के शख्स की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने कल्ली, हरिओम, वीरू, वीरेंद्र और सोनू को डकैती और हत्या के आराेप में गिरफ्तार किया। सोनू की गिरफ्तारी वारदात के दो महीने बाद की गई थी। उसके पास मृतक का मोबाइल फाेन मिला था। निचली अदालत ने सभी आराेपियाें काे फांसी की सजा सुनाई, जिसे हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था। साेनू ने हाई कोर्ट के फैसले काे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि महज माेबाइल बरामद होने से सोनू की अपराध में संलिप्तता साबित नहीं होती।