जबलपुर (ईन्यूज एमपी)-मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में एमपी पीएससी (मप्र लोक सेवा आयोग) की सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2017 की चयन सूची को निरस्त कर दिया है। चीफ जस्टिस एके मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने 13 मार्च को सुरक्षित रखे निर्णय को सुनाते हुए कहा कि मप्र सिविल सेवा (महिलाओं के लिए नियुक्ति में विशेष प्रावधान) नियम, 1997 के नियम 3 के तहत महिलाओं को 33 फीसद नियमानुसार आरक्षण देते हुए दो माह के अंदर नई सूची बनाई जाए। याचिकाकर्ताओं के वकील ब्रह्मानंद पांडे का कहना है कि इस आदेश से समस्त असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्तियां स्वतः समाप्त हो जाएंगी एवं पीएससी पुनः चयन सूची बनाने के लिए फिर से नियुक्ति प्रक्रिया आरंभ करेगी। यह है मामला एमपी पीएससी ने असिस्टेंट प्रोफेसर के चयन हेतु वर्ष 2017 में परीक्षा आयोजित की थी। इसमें मप्र की मूल निवासी महिलाओं को मप्र सिविल सेवा (महिलाओं के लिये नियुक्ति में विशेष प्रावधान) नियम, 1997 के तहत 33 प्रतिशत नियमानुसार वर्गवार आरक्षण दिया गया है। लेकिन, पीएससी ने परीक्षा के परिणाम आने के बाद बनाई चयन सूची मे सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित कोटे में अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को चयनित कर लिया था। सामान्य वर्ग की महिला दीप्ति गुप्ता, लक्ष्मी तिवारी सहित अन्य ने इसे याचिका के जरिए चुनौती दी थी। सामान्य वर्ग की महिलाओं की ओर से अधिवक्ता सुयश मोहन गुरु, ब्रह्मानंद पांडेय व मानसमणि वर्मा ने तर्क दिया कि राज्य में महिलाओं को दिया जाने वाला आरक्षण नियमानुसार वर्गवार होता है। सामान्य महिला के लिए आरक्षित कोटे में एससी, एसटी या ओबीसी महिला को समायोजित नहीं किया जा सकता है। भले ही उन के प्राप्तांक सामान्य वर्ग की महिला से ज्यादा हो। राज्य सरकार की तरफ से पूर्व शासकीय अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा एवं पीएससी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत सिंह, अधिवक्ता अंशुल तिवारी ने चयन सूची को सही बताया। आदेश के मुख्य बिंदु -प्रदेश में महिलाओं के लिए आरक्षित मप्र सिविल सेवा के तहत 33 फीसद आरक्षण नियमानुसार वर्गवार है। - सामान्य महिला की सीट केवल सामान्य महिला से ही भरी जा सकती है। भले ही अन्य वर्ग की महिलाओं (एससी, एसटी, ओबीसी) के प्राप्तांक उन से ज्यादा हो। - महिलाओं के लिए आरक्षण एक वर्ग से दूसरे वर्ग मे समायोजन नहीं हो सकता।