भोपाल (ईन्यूज एमपी)-भोपाल में विधानसभा से, जो ताजा सियासी घटनाक्रम के 13 दिन बाद शुरू हुई है. मध्य प्रदेश की विधानसभा के फ्लोर पर सत्ता का टेस्ट फिलहाल टल गया है। सोमवार को राज्यपाल लालजी टंडन 36 पन्नों के अभिभाषण के साथ विधानसभा तो पहुंचे, लेकिन उन्होंने एक मिनट से भी कम वक्त लेकर आखिरी पन्ने का आखिरी पैरा ही पढ़ा। इसके बाद राज्यपाल ने हिदायती लहजे में ‘लोकतांत्रिक मूल्यों का निर्वहन’ करने की बातें कहीं। इशारा मुख्यमंत्री कमलनाथ और स्पीकर एनपी प्रजापति की ओर ही था। इसके महज 5 मिनट बाद स्पीकर ने अपने ‘अधिकारों का निर्वहन’ करते हुए काेरोनावायरस के खतरों का हवाला देकर 26 मार्च तक कार्यवाही स्थगित कर दी। 26 मार्च यानी ठीक वही तारीख, जिस दिन राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। इसके ये मायने हैं कि फ्लोर टेस्ट 26 मार्च तक टल गया है, लेकिन शर्तें लागू हैं क्योंकि... मामला अदालत में पहुंचा, इसलिए 26 मार्च से पहले फ्लोर टेस्ट मुमकिन फ्लोर टेस्ट में देरी के विरोध में भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। सुनवाई के दौरान भाजपा सुप्रीम कोर्ट से यह मांग करेगी कि स्पीकर को जल्द फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दिए जाएं। इसके अलावा अगर स्पीकर अगले 10 दिन के भीतर बागी विधायकों को अयोग्य करार देते हैं तो भी मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है। कोर्ट में अर्जेंट हियरिंग हुई तो 26 मार्च से पहले भी फ्लोर टेस्ट हो सकता है। राज्यसभा चुनाव में 10 दिन बाकी हैं। इससे पहले अगर सियासी घटनाक्रम बदलता है तो कमलनाथ और भाजपा, दोनों ही अपने-अपने तर्क देकर राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट कराने का अनुरोध कर सकते हैं। कमलनाथ 14 मार्च को राज्यपाल को पत्र लिखकर कह चुके हैं, ‘हम फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं, लेकिन 22 विधायकों को बंधक बनाकर यह संभव नहीं है। आप गृह मंत्री अमित शाह से कहें कि बेंगलुरु में बंधक विधायकों को छुड़ाएं।’ कमलनाथ ने बाद में गृह मंत्री को भी चिट्ठी लिखी थी। ये भी एक संभावना है। इसके उदाहरण भी हैं। पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के 19 दिन बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के तीन प्रमुख दलों भाजपा, शिवसेना और राकांपा को सरकार बनाने का न्योता दिया था, लेकिन कोई भी दल सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं जुटा पाया। 12 दिन बाद रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटा और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। इससे भी पहले जून 2018 में जम्मू-कश्मीर में जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की। हालांकि, इसी बीच वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया।