भोपाल(ईन्यूज एमपी)- प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति का सिलसिला शुरू होने में डेढ़ माह शेष हैं। ऐसे में राज्य सरकार ने अपनी माली हालत और कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कामकाज पर पड़ने वाले असर को देखते हुए सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देने पर विचार शुरू कर दिया है। संविदा नियुक्ति लेने वाले कर्मचारियों को सरकार सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले फंड तत्काल नहीं देगी, जिससे माली हालत पर भी असर नहीं पड़ेगा और सरकारी काम भी प्रभावित नहीं होगा। इन कर्मचारियों को पहली बार एक साल के लिए संविदा पर रखा जा सकता है। इसके बाद संविदा अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। संविदा अवधि समाप्त होने के बाद कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले फायदे सामान्य दर से ब्याज के साथ देने पर भी विचार चल रहा है। पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है। इससे कामकाज प्रभावित हो रहा था तो शिवराज सरकार ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा दो साल बढ़ाकर 62 कर दी। यह अवधि मार्च में खत्म हो रही है। यानी 31 मार्च को प्रदेशभर में चार हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी एक साथ रिटायर होने वाले हैं। उधर, सुप्रीम कोर्ट में भी राज्य सरकार की सशर्त पदोन्नति देने की अर्जी पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है। इसे देखते हुए राज्य सरकार विकल्प तलाश रही है। पिछले दिनों कैबिनेट बैठक में वित्त विभाग ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 से बढ़ाकर 65 साल करने का प्रस्ताव रखा था। बैठक में प्रस्ताव पर चर्चा के बजाय विकल्पों पर मंथन हुआ। यहां सरकार ने मार्च के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देने के संकेत दिए हैं। सरकार यह व्यवस्था अगले एक साल जारी रख सकती है। इतने में पदोन्नति में आरक्षण मामले का फैसला आता है या सुप्रीम कोर्ट सशर्त पदोन्नति देने की मांग मंजूर करता है, तो ठीक, वरना संविदा अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। मार्च से दिसंबर 2020 तक प्रदेशभर से करीब आठ हजार अधिकारी-कर्मचारी रिटायर्ड हो जाएंगे। इसका सीधा असर सरकारी कामकाज पर पड़ेगा, क्योंकि इन पदों पर काम करने वाले नहीं हैं। कनिष्ठ अधिकारी व कर्मचारी इन पदों का वेतन तो ले रहे हैं, लेकिन पदोन्नति न मिलने के कारण वेतन के मुताबिक काम नहीं कर रहे। उल्लेखनीय है कि 30 अप्रैल 2016 को मप्र हाईकोर्ट ने 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002" खारिज कर दिया है। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यथास्थिति रखने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद से प्रदेश में पदोन्नतियों पर रोक लगी है।