इंदौर(ईन्यूज एमपी)- सरदार सरोवर बांध पूरी क्षमता से भरने की सुगबुगाहट के बीच गुजरात और मध्य प्रदेश सरकार के बीच तलवारें खींच आई है। गुरुवार को नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की इंदौर में बुलाई गई बैठक में मध्य प्रदेश के अफसरों ने प्राधिकरण पर गुजरात सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया और बैठक छोड़कर चले आए। उन्होंने आपत्ति जताई कि डेढ़ साल पहले प्रदेश के हिस्से का पानी गुजरात सरकार ने ले लिया, लेकिन उसका समायोजन नहीं किया। इसके अलावा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण पानी की मात्रा तय करने में भी भेदभाव करता है। इससे पहले पिछले सप्ताह दिल्ली में बांध भरने के मामले बुलाई गई बैठक में भी मप्र के अफसर नहीं पहुंचे थे। प्राधिकरण के स्कीम-74 स्थित कार्यालय में जलाशय नियमन समिति की बैठक में मप्र के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान सरकार के अफसर शामिल हुए। मप्र के अफसरों ने कहा कि 3 और 27 मई को बैठक में प्रदेश सरकार के पक्ष को नजरअंदाज किया गया। जब तय हो चुका है कि रिकार्डिंग के आधार पर बैठक के मिनट्स नोट बनना चाहिए, फिर भी प्रदेश की तरफ से उठाए गए मुद्दों को मिनिट्स में तोड़मरोड़ कर रखा गया। मप्र के अफसरों ने कहा कि पुरानी बैठक के मिनट्स के संशोधन के बाद ही दूसरे एजेंडों पर चर्चा होनी चाहिए। इसके बाद अफसर बैठक छोड़कर बाहर निकल आए। मामले में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के अफसरों का कहना है कि मिनट्स जारी होने के 21 दिन के भीतर आपत्तियां व सुझाव दिए जा सकते हैं, लेकिन मप्र की तरफ से आपत्ति पेश नहीं की गई। हमने उन्हें 10 दिन का अतिरिक्त समय दिया है। ऐसा है पानी का बंटवारा -नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के अनुसार गुजरात को 9 एमएफए, मप्र को 18.25 एमएफए, राजस्थान को 0.5 और महाराष्ट्र को 0.5 एमएफए पानी के उपयोग का अधिकार है। - नर्मदा में 27 एमएफए पानी आमतौर पर वर्षभर में रहता है। -सालभर नदी का प्रवाह बरकरार रखने के लिए 8.12 एमएफए पानी छोड़ना जरूरी है। - बांध की क्षमता 138 मीटर है, लेकिन निर्माण के बाद अधिकतम 130 मीटर तक ही पानी भरा जा सका है।