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सहिष्णुता धर्मों का मूल आधार - लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती महाजन

इन्दौर : आस्था के महासंगम सिंहस्थ-2016 के आयोजन से पहले इंदौर में आज से तीन दिवसीय धर्म और आध्यात्म का वैश्विक समागम शुरू हुआ। इस समागम का शुभारंभ लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के मुख्य आतिथ्य में किया गया। उदघाटन समारोह की अध्यक्षता मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने की। कार्यक्रम में भूटान के विदेश मंत्री श्री लोन्पो दोम्चो दोर्जी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह श्री सुरेश भैया जी जोशी, श्री एस.आर. भट्ट तथा महाबोधि सोयायटी श्रीलंका के अध्यक्ष श्री बनागला उपातिस्सा नायक थैरो विशेष अतिथि के रूप में मौजूद थे।
मानव कल्याण के लिये धर्म विषय को लेकर आयोजित इस समागम में विश्व के प्रमुख धर्मों के धर्मगुरू और शिक्षा जगत की जानी-मानी विभूतियां अपने-अपने धर्मों और मान्यताओं के आधार पर विश्व शांति, सामाजिक न्याय, मानव सेवा, ज्ञान व आध्यात्म जैसे विषयों पर चिंतन-मनन करेंगे।
लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन
उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुये लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने कहा कि सिंहस्थ-2016 के पूर्व विचारों के इस महाकुंभ का आयोजन सराहनीय प्रयास है। इस तरह के आयोजनों से सिंहस्थ सही मायने में सार्थक होगा। सिंहस्थ के साथ इस तरह का आयोजन तन के साथ मन को भी शुद्ध करेगा । उन्होंने कहा कि धर्म शब्द व्यापक अर्थ रखता है। सहिष्णुता धर्म का मूल आधार है। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की सीख दी गई है। पर्यावरण के प्रति हमारी श्रद्धा है। हमारी परम्परा में नदियों एवं वृक्षों की पूजा का विशेष महत्व है। हमारी परम्पराओं का वैज्ञानिक आधार खोजना चाहिये।
मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान
इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने इस समागम में स्वागत उदबोधन देते हुए कहा कि सिंहस्थ हमारी सनातन परम्परा का अंग है। सिंहस्थ का आयोजन आनन्द एवं गौरव की अनुभूति कराता है। वर्तमान समय में विश्व अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। इन समस्याओं का समाधान धर्म में निहित है। उन्होंने कहा कि सिंहस्थ धर्म का महाकुंभ है। इस महाकुंभ को विश्व की समस्याओं का समाधान ढूंढने का भी माध्यम बनाया जा रहा है। इसके मद्देनजर वैचारिक समागम आयोजित किये जा रहे हैं। इन वैचारिक सम्मेलनों के आधार पर निकले निष्कर्षों पर आगामी 12, 13 एवं 14 मई को उज्जैन जिले में विशाल वैचारिक महाकुंभ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित किया जायेगा, इसमें एक घोषणा पत्र जारी होगा, जिसके माध्यम से विश्व शांति तथा मानव कल्याण के लिये निष्कर्ष होंगे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उपासना पद्धति अलग-अलग होने के बावजूद भी सभी धर्मों का ध्येय एकता, मानव एवं जीव कल्याण है। उन्होंने कहा कि मूल्य आधारित जीवन वर्तमान समय की आवश्यकता है। बगैर मूल्य का जीवन अधूरा है। उन्होंने कहा कि सारी दुनिया एक परिवार है। प्राणियों में सदभाव एवं विश्व का कल्याण सभी धर्मों का मूल आधार है। मतभेद एवं लड़ाई झगड़े का किसी भी धर्म में कोई स्थान नहीं है। सबका भला करे वह धर्म है, दूसरों को कष्ट दे वह अधर्म है। बुरा एवं गलत करने की अनुमति कोई भी धर्म नहीं देता है। उन्होंने कहा कि किसी भी उपासना पद्धति को श्रेष्ठ बताने के लिये एक-दूसरे से तुलना नहीं करना चाहिये। जीयो और जीने दो हमारी संस्कृति है। उन्होंने कहा कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। भौतिक एवं आध्यात्म का समन्वय है। शरीर एवं मन के साथ आत्मिक शांति भी जरूरी है। आत्मिक शांति धर्म से ही मिल सकती है।
श्री भैयाजी जोशी
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह श्री सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि सम्मेलन की अवधारणा मानव कल्याण पर आधारित है। सभी धर्मों की यही मान्यता रहती है कि सभी लोग सुखी एवं आनंद से संघर्षमुक्त रूप से रहें। उनका तन और मन स्वस्थ रहें। उन्होंने कहा कि परस्पर सहयोग की भावना होने से आपसी संघर्ष समाप्त हो जाते हैं। विश्व में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वावलंबी नहीं है। हमें जीवन की समग्रता के लिये परस्पर सहमति, परस्पर स्वावलंबन और परस्पर सहयोग और परस्पर सहयोग की भावना के साथ रहना अत्यंत जरूरी है। यदि विरोध के स्वर उठेंगे तो सहयोग की भावना नहीं बन पायेगी। विकसित समाज में कुछ बातों पर असहमति होती है, फिर भी प्रयास यह होना चाहिये कि अधिकांश मुद्दों पर सहमति बनें। विकसित समाज में मानव समूह को परस्पर सहमति कायम कर साथ चलना चाहिये। श्री भैयाजी जोशी ने कहा कि कर्तव्यों का पालन ही धर्म है। अपने कर्तव्यों के पालन में दूसरों के अधिकारों की रक्षा भी की जाना चाहिये। हर व्यक्ति के अपने कर्तव्य एवं अपने धर्म है। सबके अधिकारों की सुरक्षा धर्म पालन का विषय बने यह अत्यन्त जरूरी है। धर्म कर्तव्यों का प्रकटिकरण करता है, जीवन शैली को दर्शाता है। धर्म पालन में ही मानव कल्याण का मार्ग है। धर्म सास्वत होता है। भूमि एवं समूह के आधार पर कर्तव्य एवं अधिकार नहीं बदलते हैं। कर्तव्य का पालन करने वाले समाज को ही धार्मिक कहते हैं। उन्होंने भारतीय चिंतकों के दर्शन का उल्लेख करते हुये कहा कि हमें सभी की मान्यताओं एवं उपासना पद्धतियों का आदर करना चाहिये। उन्होंने कहा कि रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन मंजिल एक ही है। समस्या जब पैदा होती है, जब व्यक्ति कहता है कि मेरा ही मार्ग है, जबकि होना यह चाहिये कि मेरा भी मार्ग है। उन्होंने कहा कि मूल्य आधारित जीवन जरूरी है। अंत:करण की विशालता जीवन देती है। मूल्यों एवं सिद्धान्तों को जीवन में व्यावहारिक रूप में लाने की जरूरत है। हमें अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिये। अहिंसा शस्त्र से ही नहीं बल्कि आचरण एवं शब्दों से भी होती है।
विदेश मंत्री भूटान श्री दोर्जी
भूटान के विदेश मंत्री श्री लोन्पो दोम्चो दोर्जी ने कहा कि धर्म, व्यक्ति को शांति प्रदान करने का माध्यम है और इस कान्फ्रेंश का मूल उद्देश्य भी यही है कि धर्म को किस प्रकार मानव कल्याण के लिये प्रचारित किया जावे। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हो रही इस कान्फ्रेंश में आकर मन प्रफुल्लित है। ये विश्व स्तर पर तीसरी कान्फ्रेंश है और सिंहस्थ के पहले होने वाली इस कान्फ्रेंश में वैचारिक रूप से जो अमृत निकल कर आयेगा, वह मानव कल्याण के लिये निश्चय ही फलदायी होगा।
धर्म समाज को खुशी देने का साधन है। भूटान दुनिया में हैप्पीनेश नेशन के रूप में प्रचारित है। यहां के लोग सबसे ज्यादा खुश रहते हैं। इसके लिये गुड गवर्नेंस के साथ-साथ धर्म, समाज और सरकार तीनों मिलकर आम आदमी के लिये जीने के बेहतर राह दिखाते हैं।
श्री दोर्जी ने कहा कि विश्व स्तर पर सभी धर्मों का उद्देश्य उच्च विचारों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिये प्रेरित करना हैं। धर्म जीवन को नैतिक तरीके से जीने की राह दिखाते हैं। ग्लोबल स्तर पर धर्म समाज के लिये नई व्यवस्थाएं और सोच पैदा करता है।
भारत आदिकाल से आध्यात्म की भूमि रहा है और वास्तव में हिन्दूज्म कई धर्मों का आधार है जो यहां की भूमि से जन्मे हैं। बुद्धिज्म, जैनिज्म, सिक्खज्म का आधार हिन्दू धर्म ही रहा है। जो समयकाल के आधार पर परिस्थितियां अनुसार जन्मे हैं। भारत में जन्मे विवेकानन्द ने शिकागो में धर्म सम्मेलन में धर्म की जो प्रस्तुति दी थी, वास्तव में वही सभी धर्मों का मूल आधार है। धर्म हमें एकता का मार्ग दिखाता है और जीवन को जीने के लिये सही राह बताता है। इस धर्म सम्मेलन के माध्यम से हम विश्व को नई राह दिखा सकते हैं। यही इस धर्म सम्मेलन का उद्देश्य भी है।
श्री दोर्जी ने कहा कि मानव कल्याण में प्रत्येक धर्म का मूल मंत्र और धर्म को सदैव इस ओर ही आगे बढ़ना होगा, तब ही धर्म निरन्तर समाज और व्यक्ति के हित में कार्य कर सकेगा। आज विश्व स्तर पर जो अव्यवस्थाएं हो रहीं हैं, वे वास्तव में व्यक्ति और समाज के नैतिक पतन के कारण ही है। वैश्विक स्तर पर हमें कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे जो मानव जाति को जीवित रखने के लिए आवश्यक है। सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाओं को इस प्रकार बनाना होगा, जो मानव कल्याण को आगे बढ़ाये और उसमें धर्म के नैतिक मूल्यों का समावेश हो। धर्म आदिकाल से सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाने और उसको निरन्तर रखने के लिए कार्य कर रहा है। इस कार्य को आगे बढ़ाने का कार्य इस कान्फ्रेंश के माध्यम से बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
श्री एस.आर. भट्ट
कार्यक्रम को संबोधित करते हुये इस सम्मेलन के संयोजक तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो. एस.आर. भट्ट ने संबोधित करते हुये कहा कि धर्म का व्यापक स्वरूप एवं व्यापक अर्थ है। क्या धर्म मानव का कल्याण कर सकता है। धर्म मानव के लिये बना है या मानव धर्म के लिये। धर्म मानव की हर समस्या का समाधान कैसे कर सकता है। इन सवालों को खोजने के लिये यह समागम आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से विश्व शांति, पर्यावरण एवं प्रकृति, मानव गौरव, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों इत्यादि विषयों पर चर्चा की जायेगी।
कार्यक्रम के अन्त में प्रमुख सचिव संस्कृति श्री मनोज श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया।
तीन दिवसीय इस महाकुंभ में 26 अक्टूबर तक प्रतिदिन विभिन्न सत्रों का आयोजन किया जायेगा। इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में अमेरिका, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, भूटान, श्रीलंका, कम्बोड़िया, थाईलैण्ड, ताईवान, म्यांयार, नेपाल, सिंगापुर सहित अनेक देशों से 100 धर्मगुरूओं सहित करीब एक हजार विशिष्ट विद्वान शामिल होंगे।

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