दिल्ली(ईन्यूज एमपी)-सांसद और विधायक पब्लिक सर्वेंट हैं. उन्हें भी सरकारी खजाने से वेतन भत्ते मिलते हैं. ऐसे में उनका वकालत करना कहां तक नैतिक, कानूनी और उचित है, इस मामले पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया की तीन सदस्यीय कमेटी सोमवार को अपनी रिपोर्ट देगी. काउंसिल के चेयरमैन मनन मिश्रा ने भी उम्मीद जताई है कि शुक्रवार को कमेटी को दी गई तीन दिनों की मोहलत खत्म हो जाएगी तो ऐसे में सोमवार तक रिपोर्ट आ जाएगी. बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर बार काउंसिल ने तीन सदस्यीय समिति बनाकर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. उपाध्याय की याचिका के मुताबिक बार काउंसिल के विधान और नियमावली के मुताबिक कहीं से वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति वकालत नहीं कर सकता. क्योंकि वकालत पूर्णकालिक पेशा है. ऐसे में सांसद और विधायक जब सरकारी खजाने से वेतन और भत्ते लेते हैं तो कोर्ट में प्रैक्टिस कैसे कर रहे हैं. याचिका में कहा गया है कि जब तक कोई भी सांसद या विधायक जैसे पद पर है तब तक उसकी वकील के रूप में प्रैक्टिस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए. शपथ लेते ही उसका लाइसेंस तब तक सस्पेंड कर देना चाहिए जब तक वो सांसद या विधायक है. उपाध्याय ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का 1994 में आया जजमेंट भी अटैच किया है. इसमें प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर को कोर्ट ने कहा कि, वो तब तक वकालत के योग्य नहीं माने जाएंगे जब तक कि वो डॉक्टर के पद से इस्तीफा ना दे दें. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब डॉक्टर एक साथ दो जगह से वेतन और भत्ते लेकर वकालत नहीं कर सकता तो सांसद और विधायक कैसे. इस याचिका पर कमेटी बनाए जाने और सांसदों-विधायकों की वकालत प्रैक्टिस पर लटकी तलवार से सबसे ज्यादा परेशान फिलहाल तो कांग्रेस से जुड़े नेता हैं. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले लोकसभा और राज्यसभा सांसदों में कांग्रेस के कपिल सिब्बल , अभिषेक मनु सिंघवी, पी चिदंबरम, विवेक तंखा, केटीएस तुलसी जैसे दिग्गज शामिल हैं. वहीं टीएमसी के कल्याण बैनर्जी, एनसीपी के माजिद मेमन जैसे बड़े नाम शामिल हैं. यूपीए सरकार के पूर्व मंत्री, कांग्रेस नेता और सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने तो यहां तक कह दिया कि काउंसिल इस मामले में अगर सांसदों-विधायकों के खिलाफ कदम उठाएगी तो उचित नहीं होगा. इससे पहले उनका पक्ष भी सुना जाए. राजस्थान से राज्यसभा सांसद, कांग्रेस प्रवक्ता और सीनियर लॉयर अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि इससे तो संसद बेरोजगार लोगों से भर जाएगी. लेकिन बार काउंसिल की नियमावली में 48 से लेकर 52 तक के प्रावधान साफ-साफ कहते हैं कि वेतनभोगी वकालत नहीं कर सकता. लिहाजा सबकी निगाहें नए साल के पहले दिन पर टिकी हैं जब रिपोर्ट सौंपी जाएगी.