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सरदार वल्लभ भाई पटेल की 67वीं पुण्य तिथि पर किया नमन

बड़वानी(ई न्यूज एमपी)-शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी में स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ द्वारा आज सरदार पटेल की 67 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर आयोजित प्रेरणास्पद पूर्वज कार्यक्रम में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर और कॅरियर काउंसलर डॉ. मधुसूदन चौबे ने कहीं। यह आयोजन प्राचार्य डॉ. एन एल गुप्ता के मार्गदर्शन में किया गया।
हुआ पूजन अर्चन
सर्वप्रथम विद्यार्थी अदनान पठान, मीनाक्षी वास्कले, प्रीति गुलवानिया, अंतिम मौर्य एवं सभी विद्यार्थियों ने सरदार पटेल का पूजन अर्चन किया और दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण के माध्यम से अपनी श्रद्धा व्यक्त की।
ऐसे कहलाये वे सरदार
इस अवसर पर इतिहास के मेरिट होल्डर विद्यार्थी अंतिम मौर्य ने सरदार पटेल के 31 अक्टूबर, 1875 से 15 दिसंबर, 1950 तक के 75 वर्ष डेढ़ माह के पूरे जीवन वृत्त पर प्रकाश डाला। मौर्य ने बताया कि करीब 41 वर्ष की आयु तक वल्लभ भाई राजनीति से दूर रहे और अपने वकालात के पेशे में लगे रहे। बाद में वे महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुये। किसानों के समर्थन में बारदोली सत्याग्रह उनके नेतृत्व में किया गया था। बारदोली की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि प्रदान की थी। यह उपाधि गांधीजी को बहुत पसंद आई और वे तभी से सरदार कहलाने लगे। गांधीजी के नेतृत्व में हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन की अगवानी पटेल ने की थी।
अखण्ड भारत के निर्माता
पुस्तकालय विशेषज्ञ प्रीति गुलवानिया ने बताया कि अंग्रेजों ने भारत को खण्ड खण्ड करने की पूरी साजिश रच ली थी। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के जरिये उन्होंने देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में मिलने अथवा अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने का अधिकार दे दिया था। ऐसे में रियासतों को भारत में सम्मिलित करना बड़ी चुनौती थी। स्वतंत्रता के उपरांत वे देश के प्रथम गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री बने। उन्होंने 562 देशी रियासतों का भारत में मिलाने में सफलता प्राप्त की। उन्हें उचित ही भारत का लौहपुरुष और भारत का बिस्मार्क कहते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति गुजरात में साधुबेट नामक टापू पर स्थापित की जायेगी। यह सरदार पटेल की मूर्ति है। इसकी ऊँचाई 182 मीटर होगी।
आयोजन में सहयोग भारती धार्वे, किरण वर्मा, उमेश राठौड़, राहुल मालवीय, रविन्द्र बमनके, अदनान पठान ने दिया।

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