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गुजरात चुनावः सौराष्ट्र में आसान नहीं है भाजपा की राह, आखिर क्यों शाह के रवैये से खफा हैं कार्यकर्ता और नेता

सौराष्ट्र(ईन्यूज़ एमपी)सौराष्ट्र की हवा इस बार कुछ बदली-बदली सी है। 2012 में इस इलाके की 48 में से 30 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए कांग्रेस की चुनौती भारी पड़ रही है।
जूनागढ़, जामनगर, पोरबंदर, द्वारका और राजकोट में भाजपा की परंपरागत सीटों पर भी इस बार कड़ा मुकाबला है। पीएम नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली चले जाने का दर्द यहां सबकी जुबान पर है।

मोदी को लेकर एक खास किस्म का लगाव और अपनापन तो यहां दिखता है लेकिन 2014 के बाद से आनंदीबेन और विजय रुपाणी की सरकार से लोग रिश्ता नहीं जोड़ पाए हैं।

इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रवैये को लेकर तमाम कार्यकर्ताओं और नेताओं में नाराजगी है। कोई खुलकर आलोचना करने से डरता है लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड बोलने में किसी को कोई परहेज नहीं।

वोट प्रतिशत पर असर डालेगी नाराजगी
उक्त पांचों जिलों के करीब 40 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करने के बाद साफ है कि इस बार यह नाराजगी वोट प्रतिशत पर भी असर डालेगी और सीटों पर भी।

भाजपा के तमाम नेता दबी जुबान से कह रहे हैं कि लोगों के पास कोई विकल्प न होना एक मजबूरी है और इसका फायदा भाजपा को ही मिलेगा, लेकिन अबकी बार जो सरकार बनेगी वह पहले से और कमजोर होगी।

ज्यादातर लोग मान रहे हैं कि इस बार मुद्दों से ज्यादा अहम पार्टी के अंदरूनी झगड़े और सरकार से लोगों की नाराजगी है। हालांकि भाजपा के निचली कतार के कार्यकर्ता रटे रटाए अंदाज में नोटबंदी और जीएसटी के दूरगामी फायदे गिना रहे हैं, लेकिन यह भी कह रहे हैं कि हमें जो कहा गया है वो तो करना ही है।

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