देवास [ई न्यूज़ एमपी] चारागाह बनती जा रही खेती की जमीन में अनार के पौधे लगाकर घोड़ीघाट के रामसुख ने अपनी खेती और तकदीर दोनों को ही बदल लिया है। रामसुख विश्नोई ग्राम घोड़ीघाट विकासखण्ड खातेगांव जिला देवास के निवासी हैं। वे बताते है कि पिताजी और उनके पूर्वजों द्वारा परम्परागत खेती ज्वार, कपास, मुगंफली, उडद, मुंग आदि फसलें की जाती थी। इसके बाद सोयाबीन व चने की फसल ली जाती थी। मेरी कृषि भूमि बहुत हल्की मुरम वाली होने के कारण उत्पादन न के बराबर मिल पाता था। 15 एकड़ भूमि पर करीबन 80 से 90 हजार रूपये ही मिल पाते थे। जिस कारण अधिकतर हिस्सा चारागाह में उपयोग लिया जाता था। इस कारण मुझे खेत में जाने की इच्छा भी नहीं होती थी। एक दिन मुझे उद्यानिकी विभाग के विस्तार अधिकारी प्रकाश खपेड मिले। उन्होंने मुझे कृषक संगोष्ठी एवं प्रशिक्षण में बुलाया। मुझे उद्यानिकी अधिकारी व वैज्ञानिक भी मिलें जो कि उद्यानिकी तकनीकी खेती के बारे में बता रहे थें। मेरे द्वारा हल्की मुरम वाली भूमि की चर्चा की गई, जिसमें मुझे अनार की खेती लगाने हेतु सलाह दी गई। साथ ही महाराष्ट्र में भ्रमण कराया गया जो कि हल्की मुरम वाली भूमि पर अधिक उत्पादन ले रहे थे। उद्यानिकी अधिकारी की सलाह अनुसार अनार फसल का चयन किया गया। जिसमें मेरे द्वारा 15 एकड़ हल्की मुरम वाली भूमि पर अनार फलोद्यान का रोपण किया गया। मुझे शासन की योजना के अनुसार 40 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर के मान से अनुदान तीन किस्तों में मिला। शासन से प्राप्त तीन किस्तों में अनुदान से बड़ी सहायता मिली। खेती करने का उत्साह भी मिला। उद्यानिकी विभाग के अधिकारी द्वारा समय-समय पर तकनीकी जानकारी खाद्, दवाई/माइक्रोन्यूट्रेन ड्रीप एरीगेशन से खाद देने की विधियां बताई गई। दो साल में पहली अनार फसल की तुडाई की गई, जोकि 8.70 रुपए लाख में बेची गई। इससे मेरा उत्साह काफी बढ़ा इसके दो माह के इन्तजार के बाद दूसरी फसल की तैयारी की गई। खाद एवं माईक्रोन्यूट्रेन दिये गये। मेरे द्वारा दूसरी फसल 55.20 लाख रुपए में बेची गई इसके 2 माह के इन्तजार के बाद तीसरी फसल की तैयारी की गई। जो वर्तमान में एक महीने बाद बेचने की तैयारी में है। यह करीबन 50 से 60 लाख तक बिकने की उम्मीद है। मेरे व मेरे परिवार द्वारा जिस खेत में कभी जाने की इच्छा नहीं होती थी। वहां अब म.प्र. के अलावा अन्य राज्यों से किसान खेती देखने एवं सलाह लेने आते है। रामसुख जी का कहना है कि मैं उद्यानिकी विभाग का बहुत आभारी हूँ, जिसके कारण अनार का लाखों रूपयें का उत्पादन हो रहा है। वर्तमान में मेरी आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। क्षेत्र के लोग मुझे अनार वाले भैया के नाम से पुकारने लगे हैं।