(ईन्यूज़ एमपी) उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के मामले में अमरीका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर भारत का नाम आता है। लेकिन जहाँ तक गुणवत्ता की बात है दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।कथित रूप से भारत में स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच पाता है जिसकी वजह है स्कूलो में नियमित और उचित शिक्षा व्यवस्था का न होना।भले ही सरकार और निजी विद्यालय अपने स्तर पर कितनी भी कोशिश करें।लेकिन आज का युग शिक्षा के क्षेत्र में कोचिंग सेंटरों का युग बन चुका है।सरकारी नोकरी या ढंग की जॉब न होने के कारण 2000 से 5000 रूपये वेतन पाने वाले प्राइवेट शिक्षको ने निजी कोचिंग संसथान चलाने शुरू कर दिए और पूरी शिक्षा प्रणाली की बैंड बजा दी। ये बात अलग है की अपनी जरूरते पूरी करने के लिए कुछ बच्चों को घर पर पढ़ाना और उनसे न्यूनतम शुल्क लेना। लेकिन आज हालात कुछ ऐसे हो गए है की लोगो ने शिक्षा को धंधा बना लिया है। बड़े बड़े कोचिंग संसथान खुल चुके है जो सैकड़ो की तादात में विद्याथियों को प्रवेश देते है और हज़ारो रूपये लुटे जाते है। इस वज़ह से विद्यालय केवल परीक्षा पास करने का माध्यम बन कर रह गया है। किसी विशेष परीक्षा के लिए खोले गए कोचिंग संस्थान महत्वपूर्ण होते है जेसे - पीएससी, यूपीएससी,कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट, पीएमटी,नीट,जेईई आदि।लेकिन विद्यालय स्तर की पढ़ाई के लिए जब विद्यार्थियो को केवल परीक्षा उपयोगी ज्ञान प्राप्त होता है तब वे आगे चलकर शिक्षित बेरोजगार बन जाते है। क्योंकि उनका प्रारंभिक एवम् व्यवहारिक ज्ञान कमजोर होता है। आज कई विद्यार्थी स्नातक एवम् स्नाकोत्तर करके भी बेरोजगार है। सिर्फ और सिर्फ बिगड़ी हुई शिक्षा प्रणाली के कारण। आज शासन द्वारा और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों द्वारा इतनी सुविधाये प्रदान की जा रही है।ताकि विद्यार्थी को उत्तम से उत्तम शिक्षा दी जा सके।किन्तु विद्यार्थियो का इस ओर कोई रुझान नही है। इस प्रकार आगे चलकर उन्हें शिक्षित बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है।वहीं भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानि 11 फीसदी है। हाल ही में एक शोध के अनुसार इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके चार में से एक भारतीय छात्र ही नौकरी पाने के योग्य हैं. (पर्सपेक्टिव 2020) भारत के पास दुनिया की सबसे बड़े तकनीकी और वैज्ञानिक मानव शक्ति का ज़ख़ीरा है इस दावे की यहीं हवा निकल जाती है।राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का शोध बताता है कि भारत के 90 फ़ीसदी कॉलेजों और 70 फ़ीसदी विश्वविद्यालयों का स्तर बहुत कमज़ोर है।आईआईटी मुंबई जैसे शिक्षण संस्थान भी वैश्विक स्तर पर जगह नहीं बना पाते।साथ ही साथ सिम्बोसिस और एम्स जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संसथान भी 200 की लिस्ट से काफी दूर है। भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में भी 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी है।यदि बात स्कूलो की करें तो शिक्षको की कमी के मामले में स्कूलो की हालत और ख़राब है यहाँ शिक्षको की कमी इस कदर है की बिना योग्यता को परखे प्राइवेट स्कूल शिक्षको की भर्ती कर लेते है और विद्यार्थियो को कोचिंग संस्थानों का सहारा लेना पड़ता है।सरकारी स्कूलो के हालात कुछ ऐसे है की प्राथमिक शालाओ में साल भर 4 से 5 कक्षाये एक साथ लगती है और पढ़ाने वाला शिक्षक केवल एक होता है।सरकार स्कूल तो खुलवा देती है लेकिन शिक्षक नियुक्त करने में कंजूसी करती है।एक ओर आरक्षण जैसी व्यवस्था योग्यता के साथ खिलवाड़ करती है।चाहे कॉलेजों में प्रवेश की बात हो या सरकारी नोकरी की या फिर सरकार की शिक्षा और रोजगार संबंधी योजनाओं की।मप्र में पिछले 5 साल से लैपटॉप वितरण योजना लागू है लेकिन इस वर्ष योजना में आरक्षण इस कदर लागु कर दिया गया है की सामान्य और पिछड़ा वर्ग के लिए अलग अंक सीमा और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए अलग समय सीमा तय की गयी है।इस प्रकार विद्यार्थियो के साथ शिक्षा रुपी वृक्ष की प्रत्येक शाखा पर भेदभाव किया जा रहा है।दूसरी ओर भारतीय विश्वविद्यालय औसतन हर पांचवें से दसवें वर्ष में अपना पाठ्यक्रम बदलते हैं लेकिन तब भी ये मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहते हैं।अच्छे शिक्षण संस्थानों की कमी की वजह से अच्छे कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए कट ऑफ़ प्रतिशत असामान्य हद तक बढ़ जाता है. इस साल श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स के बी कॉम ऑनर्स कोर्स में दाखिला लेने के लिए कट ऑफ़ 99 फ़ीसदी था।वही अध्ययन बताता है कि सेकेंड्री स्कूल में अच्छे अंक लाने के दबाव से छात्रों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से बढ़ रही है।जहाँ विद्यार्थियो पर माता पिता का दबाब होता है दूसरी ओर स्कूल और कोचिंग दोनों जगह फंसे रहते है।क्योंकि कमजोर विद्यार्थी को भी उसी तरीके से पढ़ाया जाता है जितना होशियार विद्यार्थी को।दूसरी ओर भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए हर साल सात अरब डॉलर यानी करीब 43 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च करते हैं क्योंकि भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर घटता जा रहा है। - शिवांगी पुरोहित