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एक सवाल हमारा भी: आखिर क्या कुछ कहता है आजादी का 70वां साल, देश को है बदलाव की जरूरत

(ईन्यूज़एमपी डॉट कॉम) - हर साल 15 अगस्त की तारीख हमारे लिए यह मायने रखती है की इस दिन हमारा देश आजाद हुआ था, भारत को अंग्रेज़ो की गुलामी से आजादी मिली थी। इस स्वतंत्रता दिवस मै देश के युवाओ से एक प्रश्न करना चाहती हूँ। क्या स्वतंत्रता दिवस पर हमे वही ख़ुशी होती है जो 70 साल पहले 15 अगस्त 1947 को सभी भारतवासियो को हुई थी। वह ख़ुशी जिसमे सभी के आँसू झलक आये थे। कुछ ऐसी ख़ुशी जो पिंजरे खुलते ही उड़ते पंछी को होती है। क्या हम उस ख़ुशी को हर साल महसूस करते है? या फिर हम इसे केवल एक राष्ट्रिय त्यौहार मानते है।शायद ही हम उस ख़ुशी को महसूस करते है क्योंकि हमने अंग्रेजो की गुलामी नही सही है, हमने उनके अत्याचारो को नही सहा है, वो हम नही थे जो अंग्रेजो के विरोध में सड़को पर उतर आते थे, वो हम नहीं थे जिन्होंने अपनी देह पर सैकड़ो कौड़े खाये थे, वो हम नही थे जिनके गहरे घावों पर नमक फेरा गया था, वो हम नही थे जिनने इतनी यातनाये सही थी, वो तीन हम नही थे जो भारत के लिए फाँसी पर लटक गए थे, वो सब हम नही थे लेकिन वो हममे से ही तो थे। वो भारत माँ के वीर सपूत थे। ये 'वीर सपूत' जैसा ऐतिहासिक सा लगने वाला शब्द अब केवल सरहद पर अपनी जान देने वाले भारतीय जवानो के लिए उपयोग किया जाता है। क्योंकि वे ही वीर सपूत कहलाने लायक बचे है और हम भारत के युवा, जिनमे न भगत सिंह जेसी देश भक्ति है, न आजाद जेसी वीरता और न ही सुभाषचंद्र जैसा जोश। हमने देश की रक्षा और व्यवस्था का ठेका सरकार को दे रखा है। जब सरकार अपना काम ठीक से नही करती है तो हम सरकार को बुरा भला कहकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेते है। हम सारा इतिहास जानते है की भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,सुभाषचंद्र कौन थे और इन सभी ने भारत के लिए क्या क्या किया। देश की आज़ादी के लिए किस किस ने अपना योगदान दिया हम उन सभी से भली भांति परिचित है। पहली कक्षा से ही हम इन वीर सपूतो के बारे में पढ़ना शुरू कर देते है लेकिन क्या हमने कभी इनसे प्रेरणा ली है?
हमारे बापू महात्मा गांधी हमे 'सत्य और अहिंसा' का पाठ पढ़ा गए है लेकिन हम उनकी नीतियों के बिलकुल विपरीत चल रहे है। उन्होंने हमे अहिंसा का पाठ पढ़ाया और लोग आज भी हिन्दू मुस्लिम के नाम पर लड़ रहे है, मंदिर- मस्ज़िद कर रहे है। जो बचपन में साथ खेला करते थे आज एक दूसरे के खिलाफ सड़को पर उतर रहे है,आपस में पथराव कर रहे है और एक दुसरे की हत्या कर रहे है।बापू ने जिस गौ को माता का स्थान दिया था। आज लोग उस गौ माता के मांस के लिए लड़ रहे है।एक तरफ उसे पूजा जाता है और दूसरी तरफ उसे आहार बनाया जाता है।
हम भारत के नवयुवक शराब, तम्बाकू, सिगरेट, गांजा जैसे खतरनाक व्यसन कर रहे है जिससे देश का भविष्य खोखला होता जा रहा है। हम भारत का वर्तमान भी है और भविष्य भी, लेकिन भारत के अतीत को भूलना या नज़र अंदाज़ करना एक बड़ी गलती है।युवा वर्ग का अक्सर एक सवाल होता है की हम तो अभी अपने पैरो पर खड़े भी नही हुए है हम भला देश के लिए क्या कर सकते है? तो मेरे पास इस सवाल का जबाब है की हमारे छोटे छोटे प्रयास और अच्छी आदते देश में सही बदलाव ला सकते है। क्या आप जानते है? भारत में हर साल कई राज्य सूखे की मार झेलते है जहाँ लोग एक एक बूँद पानी के लिए तरस जाते है , कुछ तो प्यास के मारे मर भी जाते है और इसका सबसे बड़ा कारण है देश में दिन ब दिन हरियाली का कम होना।
क्यों न एक नयी पहल शुरू की जाय। हर हफ्ते किसी भी जगह एक पौधा रोपा जाये। हम सोचते है की पौधे लगाना बहुत उबाऊ काम है लेकिन एक बार करके तो देखिये। जब वो पौधा धीरे धरि बड़ा होगा तो आपको कितना अच्छा लगेगा। जब वो पौधा एक पेड़ बन जायेगा तो आपको स्वयं पर गर्व होगा की अपने देश को कुछ दिया है। तो फिर शुरुआत कीजिये इस 15 अगस्त से। एक पौधा अपने देश के नाम।इस 15 अगस्त हमारा कर्तव्य केवल व्हाट्सएप और फेसबुक पर देश भक्ति जताने से पूरा नही होगा। इस बार दिखा दीजिये की आप एक सच्चे और अच्छे भारतीय है। "जय हिन्द"


शिवांगी पुरोहित
स्वतन्त्र लेखिका

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