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Home मध्य प्रदेश राष्ट्रीय कला उत्सव का CM मोहन ने किया शुभारंभ, बोले- हमारी परंपरा में नृत्य से गढ़ी जाती हैं कहानियां

राष्ट्रीय कला उत्सव का CM मोहन ने किया शुभारंभ, बोले- हमारी परंपरा में नृत्य से गढ़ी जाती हैं कहानियां

भोपाल (ईन्यूज़ एमपी): राष्ट्रीय कला उत्सव का भव्य शुभारंभ आज भोपाल में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के हाथों हुआ। कला, संस्कृति और शिक्षा के संगम से सजे इस आयोजन में विधायक भगवान दास सबनानी, महापौर मालती राय, शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह और एनसीईआरटी के निर्देशक दिनेश प्रसाद सकलानी समेत कई गणमान्य हस्तियां मौजूद रहीं।

कार्यक्रम की शुरुआत छात्रों के स्वागत गीत "शुभ स्वागतम" से हुई। इसके बाद हिमाचल, कश्मीर, लद्दाख और अन्य जनजातीय क्षेत्रों की समृद्ध सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

सीएम मोहन ने साझा की भारतीय परंपरा की झलक
मुख्यमंत्री ने कला उत्सव को भारतीय संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करने का अनूठा मंच बताते हुए कहा, "हमारी परंपरा में नृत्य और कला के माध्यम से कहानियां कही जाती हैं। यह कार्यक्रम बच्चों की छिपी हुई प्रतिभाओं को पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने का अवसर देता है।"

उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का उल्लेख करते हुए कहा, "श्रीकृष्ण ने बांसुरी वादन, विराट स्वरूप और योग विद्या जैसी कलाओं को अपनाया, जो भारतीय संस्कृति की पहचान हैं।" सीएम ने गुरुकुल परंपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

‘2047 का भारत’ थीम पर छात्रों का प्रदर्शन
इस वर्ष की थीम "विकसित भारत 2047: भारत के लिए एक दृष्टिकोण" पर आधारित है। देशभर से आए 700 स्कूली छात्रों ने कला और संस्कृति के विविध रूपों को मंच पर प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक स्तर के छात्रों को भारतीय कला और सांस्कृतिक विविधता का अनुभव देना और उनकी रचनात्मकता को निखारना है।

एनसीईआरटी के निर्देशक प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा, "हम उन किताबों का निर्माण कर रहे हैं, जो देश की विशेषता और विविधता को सहेजेंगी।"

6 जनवरी को होगा समापन, विजेताओं का होगा सम्मान
कार्यक्रम में तीस अलग-अलग श्रेणियों में प्रतियोगिताएं हो रही हैं। कला उत्सव का समापन 6 जनवरी को होगा, जहां विजेताओं को सम्मानित किया जाएगा। प्रोफेसर ज्योत्सना तिवारी ने बताया कि इस बार कहानी वाचन जैसी विधा को भी शामिल किया गया है, जो हमारी मौखिक परंपरा को संरक्षित करने की दिशा में अहम कदम है।

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