सीधी(ईन्यूज एमपी): मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 12 नवंबर 2024 को चूल्ही-बढ़उरा चूना पत्थर ब्लॉक की ई-नीलामी में जेकेके माइंस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को विजेता घोषित किए जाने के बाद यह मामला तूल पकड़ रहा है। यह खनन ब्लॉक सीधी जिले में स्थित है और इसके कारण 12 गांव – मर्चबार, पुरुषोत्तमगढ़, ठाकुरदेवा, भमरहा, सेमरिया, झगरहा, चूल्ही, कुबरी, तेंदुआ, कारगिल, नौगवांदर्शन सिंह, और सोनबरसा – के पूर्ण रूप से प्रभावित होने का अंदेशा है। **12 गांवों पर मंडराता संकट** इस परियोजना के तहत करीब 4,584 एकड़ जमीन खनन के लिए आवंटित की गई है, जिससे न केवल ये गांव उजड़ने की कगार पर हैं, बल्कि लगभग 50,000 ग्रामीणों के जीवन पर गहरा संकट आ गया है। परियोजना से प्रभावित क्षेत्रों में विशाल गड्ढों के बन जाने का अनुमान है, जिससे कृषि, आजीविका और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। **विस्थापन की त्रासदी** टोंको-रोंको-ठोंको क्रांतिकारी मोर्चा के संयोजक उमेश तिवारी ने बताया कि विस्थापित गांवों का दृश्य बेहद करुणामय होता है। उन्होंने कहा, "सिंगरौली और वाणसागर परियोजना से विस्थापित गांवों में हमने उजड़े हुए घर, खाली खेत, और वीरान गलियां देखी हैं। वहां केवल खंडहर और आसमान की ओर टकटकी लगाए रोते हुए आवारा कुत्ते दिखाई देते हैं।" **सरकार और जनप्रतिनिधियों पर आरोप** तिवारी ने सरकार और जनप्रतिनिधियों पर ग्रामीणों के साथ विश्वासघात का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह परियोजना केवल एक निजी कंपनी और सरकारी खजाने को लाभ पहुंचाने के लिए है। ग्रामीणों के हितों और उनकी आजीविका की अनदेखी की गई है। **ग्रामीणों को करना होगा संघर्ष** तिवारी ने ग्रामीणों से अपील की है कि वे अपने और अपने परिवार की रक्षा के लिए आज ही संघर्ष करें। उन्होंने कहा, "कल नहीं, आज ही लड़ना होगा। अगर अभी नहीं जागे तो इन गांवों का अस्तित्व मिट जाएगा।" **सरकार से सवाल** 1. क्या 12 गांवों की आबादी और उनकी जमीन का नाश करना तर्कसंगत है? 2. विस्थापित होने वाले ग्रामीणों को क्या न्यायपूर्ण मुआवजा और पुनर्वास मिलेगा? 3. क्या विकास का अर्थ केवल पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करना है?