भोपाल (ईन्यूज़ एमपी): मध्य प्रदेश की स्कूल शिक्षा व्यवस्था सवालों के घेरे में है। सरकारी और निजी स्कूलों में नामांकित छात्रों की संख्या तेजी से घट रही है, जो शिक्षा के गिरते स्तर और बच्चों को स्कूल से जोड़ने के प्रयासों पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। बीते 8 सालों में 22 लाख बच्चे स्कूलों से गायब हो गए हैं, और हर दिन औसतन 1000 बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। सरकारी और निजी स्कूलों की हालत चिंताजनक सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या में 12 लाख की गिरावट आई है, जबकि निजी स्कूलों में भी यह आंकड़ा 9 लाख तक पहुंच गया है। यह गिरावट ऐसे समय हो रही है जब प्रदेश में बच्चों की आबादी में वृद्धि दर्ज की गई है। बढ़ती आबादी, घटते छात्र: बड़ा सवाल प्रदेश में बच्चों की आबादी बढ़ रही है, लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या लगातार घट रही है। यह शिक्षा विभाग के लिए एक गंभीर चेतावनी है। सरकारी स्कूलों में गिरती संख्या यह संकेत देती है कि लोगों का भरोसा कमजोर हो रहा है। निजी स्कूलों में भी बच्चों की संख्या घटने से स्पष्ट है कि सिर्फ सरकारी नहीं, बल्कि समूची शिक्षा प्रणाली चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। मुख्य कारण क्या हो सकते हैं? 1. गुणवत्ता की कमी: सरकारी स्कूलों में शिक्षा का गिरता स्तर और बुनियादी सुविधाओं की कमी। 2. आर्थिक समस्याएं: कई परिवार बढ़ते खर्च के कारण बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने में असमर्थ हैं। 3. ड्रॉपआउट रेट: माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी। 4. ऑनलाइन शिक्षा का प्रभाव: कोरोना महामारी के दौरान स्कूलों से कटे बच्चों ने दोबारा लौटने में रुचि नहीं दिखाई। समाधान की दिशा में प्रयास जरूरी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए: 1. सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारनी होगी। 2. ड्रॉपआउट रोकने के लिए विशेष कार्यक्रम लागू करना होगा। 3. निजी स्कूलों की फीस को नियंत्रित कर परिवारों को राहत दी जानी चाहिए। 4. स्कूल-कॉलेजों में छात्रों के लिए आकर्षक योजनाएं और बेहतर माहौल बनाया जाए। प्रदेश में शिक्षा की यह गिरावट केवल आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक समस्या का संकेत है, जिसका समाधान तत्काल ढूंढा जाना जरूरी है।