भोपाल (ईन्यूज़ एमपी): राजनीति का खेल भी बड़ा निराला है। जो कल तक मंच पर नायक बनकर भाषण दे रहे थे, आज जनता के "कटाक्ष" का पात्र बन गए। मध्य प्रदेश के वन मंत्री रामनिवास रावत का 'सियासी वनवास' विजयपुर उपचुनाव में तय हो गया। कांग्रेस से भाजपा में आए रावत को जनता ने ऐसा सबक सिखाया कि मंत्रीपद से भी छुट्टी हो गई। कभी कांग्रेस के भरोसेमंद योद्धा रहे रावत ने अपने राजनीतिक "स्वार्थ" के लिए पार्टी बदली, लेकिन जनता ने साफ संकेत दिया—"हम नेता बदलेंगे, नीयत नहीं!" विजयपुर में उन्हें कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने 7364 वोटों से हराकर राजनीतिक जमीन दिखा दी। मजेदार बात यह है कि मल्होत्रा कोई पुराने धुरंधर नहीं, बल्कि सरपंच से विधायक बने नए चेहरे हैं। मंत्री बनने का मोह, और जनता का तोहफा 2023 के विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा ने बहुमत का परचम लहराया, वहीं कांग्रेस विजयपुर सीट बचाने में कामयाब रही थी। लेकिन अपनी कुर्सी और पद के मोह में रावत ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा। मंत्री पद की आस में उन्होंने जनता का विश्वास तोड़ा, और नतीजा उपचुनाव में करारी हार के रूप में सामने आया। 'वन-वास मंत्री' की नई पहचान हार के बाद रावत ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर नैतिकता दिखाने की कोशिश की, लेकिन अब उनका नाम 'वन मंत्री' से ज्यादा 'वन-वास मंत्री' के रूप में लिया जा रहा है। कांग्रेस का नायक बनने से लेकर भाजपा का चेहरा बनने तक, और फिर जनता द्वारा नकारे जाने तक, उनकी यात्रा राजनीति के "उतार-चढ़ाव" की बेहतरीन मिसाल बन गई। भाजपा ने इस हार को हल्के में लेते हुए बयान दिया कि विजयपुर कांग्रेस की परंपरागत सीट थी, लेकिन भाजपा ने अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया है। सवाल यह है कि क्या यह हार रावत की रणनीति का फेल होना था, या भाजपा ने उन्हें सियासी बलि का बकरा बना दिया? विजयपुर का यह चुनाव बताता है कि जनता सब जानती है। "वन-वास" का सफर सिर्फ रामायण तक सीमित नहीं, राजनीति में भी इसे दोहराया जा सकता है। अब रावत को तय करना है कि इस हार के बाद वह राजनीति में किस भूमिका में वापसी करेंगे—'साधक' के रूप में या 'राजनीतिक पर्यटक' के रूप में!