छतरपुर(ईन्यूज एमपी)-- मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से लगभग 110 किलोमीटर दूर गौरिहार तहसील अंतर्गत किशनपुर गांव में आल्हा ऊदल का किला है। यह एक टापूनुमा जगह पर बना है। इसके चारों ओर तालाब थे, जिसकी वजह से सुरक्षा की दृष्टि से यह किला और भी अभेद था। तालाबों में आज भी कुएं और बावड़ी तक पहुंचने के गुप्त मार्ग बने देखे जा सकते हैं। किले के चारों तरफ विशाल परकोटा उसकी सुरक्षा को और मजबूत बनाता है। मगर, यह किला अब जर्जर हो रहा है। दरकती दीवारें इस बदहाली को बयां कर रही हैं। जानकार बताते हैं कि एक गुप्त मार्ग (सुरंग) केन नदी के टापू पर स्थित रनगढ़ के दुर्ग तक गया हुआ है। एक गुप्त मार्ग जुझार नगर तक गया है, जिसे अब बारीगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि आल्हा ऊदल के पिता दशराज यहां रहा करते थे।किवदंती यह भी है कि आल्हा ऊदल का जन्म भी यही हुआ था। जानकार बताते हैं कि किले के एक हिस्से में बने कमरे में आल्हा की छठी दीवार पर अंकित थी। इसमें साफ तौर पर आल्हा की छठी लिखा, गेरुए रंग का शिलालेख मौजूद था। मगर, दफीना यानी जमीन में गड़ा खजाना खोदने वालों ने उस स्थान को भी खुर्द-बुर्द कर दिया। यह विशाल किला संरक्षण के अभाव में जर्जर और खंडहर हो चुका है। वहीं, दफीना खोदने वालों की भी इस पर नजर रही और किले के लगभग हर अलग-अलग हिस्से में दफीना के चक्कर में लोगों ने खुदाई भी की है। इसकी वजह से यह किला और भी जर्जर हो चुका है। कहा यह भी जाता है कि आल्हा ऊदल यहां रहते थे और रियासत पर निगरानी रखा करते थे। इसे पहले दशपुरवा के किले के नाम से जाना जाता था। आस-पास घना जंगल होने की वजह से शिकार के लिए भी यह जगह आल्हा ऊदल को बहुत पसंद थी। किले से कुछ किलोमीटर की दूरी पर आल्हम देवी माता का शक्तिपीठ है।