सीधी ( ईन्यूज एमपी)ऋषिकेश फाउंडेशन के प्रवक्ता ने अपने मिशन रामबांण अभियान के वारे में जानकारी देते हुए बताया है क़ी हम सभी ने अपने लिए या अपनों के लिए कभी न कभी ऐलोपैथिक दवाइयाँ ज़रूर ख़रीदी होंगी। बच्चे हो या बूढ़े, गरीब हो या अमीर सबको दवा की ज़रूरत पड़ती है। इन दवाओं में लोगों की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा लुट जाता है। मेडिकल स्टोर में मिलने वाली यही दवाइयां आपको एक चौथाई से लेकर एक दहाई तक की क़ीमत में मिल सकती हैं। इन सस्ती क़ीमत में मिलने वाली दवाओं को ही जेनरिक दवाइयां कहा जाता है। ये दवाएँ आपको सस्ती क़ीमत पर मिल सकें और आपकी कमाई लुटने से बच सके, इसके लिए ऋषिकेश फ़ाउण्डेशन और मोगली पलटन द्वारा अगले एक साल तक एक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान का नाम होगा मिशन रामबाण। इसके माध्यम से जेनरिक दवाइयों की गुणवत्ता, क़ीमत, उपलब्धता आदि से जुड़ी तमाम भ्रांतियों को दूर किया जाएगा। जेनरिक दवाएँ क्या होती हैं..? आम तौर पर सभी दवाएं एक तरह का "केमिकल सॉल्ट' होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है। जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाले पैरासिटामोल सॉल्ट को कोई कंपनी इसी नाम से बेचे तो उसे जेनेरिक दवा कहेंगे। वहीं, जब इसे किसी ब्रांड जैसे- क्रोसिन के नाम से बेचा जाता है तो यह उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि सर्दी-खांसी, बुखार और बदन दर्द जैसी रोजमर्रा की तकलीफों के लिए जेनरिक दवा महज 10 पैसे से लेकर डेढ़ रुपए प्रति टैबलेट तक में उपलब्ध है। ब्रांडेड में यही दवा डेढ़ रुपए से लेकर 35 रुपए तक पहुंच जाती है। बाजार में जेनरिक दवाओं के प्रयोग को लेकर कई तरह के मिथक और टैबू मौजूद हैं। इनमें एक आम धारणा यह है कि जेनरिक दवाईयां असरदार नहीं होती हैं। ये दवाईयों असर करने में काफी समय लेती हैं, इनके निर्माण में घटिया मेटेरियल लगाया जाता है और ये सुरक्षित नहीं हैं। हालांकि ये सभी धारणाएं गलत और बेबुनियादी साबित हो चुकी हैं। जेनरिक दवाईयां पूरी तरह से सुरक्षित, कारगर, सभी की पहुंच में और किफायती हैं।