जबलपुर(ईन्यूज एमपी)- हाई कोर्ट की अधिवक्ता शेफाली जैन ने सुप्रीम कोर्ट के उस ताजा फैसले के हवाले से महत्वपूर्ण विधिक प्रविधान की जानकारी दी, जिसमें यह अभिनिर्धारित कर दिया गया है कि ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण विकृत या असंभव न होने पर हाई कोर्ट का बरी करने के फैसले में हस्तक्षेप करना अस्वीकार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि दो विचारों की संभावना की स्थिति में, यदि ट्रायल कोर्ट आरोपित को बरी कर देता है तो हाई कोर्ट के लिए ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होगी, जब तक ट्रायल कोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण विकृत नहीं होता.न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की युगलपीठ ने कहा कि किसी भी मामले में भले ही दो दृष्टिकोण संभव हों और ट्रायल जज ने दूसरे दृष्टिकोण को अधिक संभावित पाया हो, हाई कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होगी, जब तक कि ट्रायल जज द्वारा लिया गया दृष्टिकोण विकृत या असंभव न हो। हाई कोर्ट के निष्कर्षों को उलटते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि हाई कोर्ट के लिए आरोपितों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करना तभी स्वीकार्य होगा, जब वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि ट्रायल जज के निष्कर्ष सही साबित होंगे।अदालत ने शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य का जिक्र करते हुए कहा-साक्ष्यों की श्रृंखला इतनी संपूर्ण होनी चाहिए कि निष्कर्ष के लिए कोई उचित आधार न छूटे। अभियुक्त की बेगुनाही के साथ और यह दिखाना होगा कि सभी मानवीय संभावनाओं में यह कार्य अभियुक्त द्वारा किया गया होगा