पत्रकारिता जुनून और जज्बे का पेशा, विश्वसनीयता पर संकट संविधान में वर्णित आर्टिकल 19 के तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रदान की गई है। अभिव्यक्ति की आजादी के कारण ही हम अपनी बात कह पाते हैं, लिख पाते और बोल पाते हैं। पत्रकारिता का सिद्धांत भी इसी के इर्दगिर्द काम करता है। सूचना क्रांति के दौर में भले ही खबर सोशल मीडिया में आ जा रही हो, मग़र उसकी विश्वसनीयता नही होती। विश्वसनीयता को बनाये रखने के लिए अखबार व टेलीविजन चैनलों में काम करने वाले रिपोर्ट्स फील्ड पर होते हैं। सही तथ्य के साथ खबर बताते हैं। आज के दौर में बड़ा आसान है पत्रकारों को एक पक्षीय पत्रकार कह देना। या बिकाऊ पत्रकार का तमगा दे देना। आरोप लगा देना। जो हर पत्रकार की पत्रकारिता पर सवाल उठाते हैं, वे एक दिन भी नही निभा सकेंगे एक ईमानदार रिपोर्टर का किरदार। रिपोर्टर जिन परिस्थितियों में आप तक खबर पहुँचा रहा होता है न, उन परिस्थितियों को समझना आसान नही है। सर्दी हो या बरसात या फिर भीषण गर्मी। हर मौसम से लड़ता हुआ रिपोर्टर खुद से समझौता करता है। इस लिए नही की उसे बड़ी मोटी रकम मिल रही है। बल्कि इस लिए की कहीं हमारा पाठक, दर्शक किसी खबर से अनजान न रह जाये। रिपोर्टर को प्रेम है अपने पेशे से। अपने दर्शक से। अपने पाठक से और काम से। रिपोर्टर हर रोज जूझता है, खबरों में। हफ़्तों काम करता एक स्टोरी के लिए। तब जाकर पहुँच पाती हैं दर्शक या पाठक तक सच्ची कहानी। कुछ खबरे दब जाती है। कुछ चल जाती है। जो खबरें दब गई उन खबरों के प्रति दुःख होता है, मगर उस दुख को अंदर ही दफ़्न करना पड़ता है। जो खबरें चल गई और उस पर एक्सशन हुआ समझो दिन बन जाता है। एक पत्रकार की जिंदगी इतनी आसान नही होती। सब कु छ एक कह देना या लिख देना इतना आसान नही है, थोड़ी मुश्किल है। मग़र लिखा या बोला जा रहा है। यह लिख देने या बोल देने की स्वतंत्रता संविधान से ही तो मिली है। चौथा स्तंभ का तमगा देने मात्र से हम पत्रकारिता के पेशेवर लोग प्रहरी नही हुए। बल्कि हम अपना जुनून के साथ पेशे के प्रति समर्पण और ईमानदारी से काम करते हुए कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे होते हैं।