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होली के हर्ष में लोकतंत्र का फाग...…

संयोग ही है की इस बार होली के हर्ष में लोकतंत्र भी मिलकर फाग गा रहा है, एक तरफ होली के रंगों में रंगे हुए फगुआ गाते हमारे लोग वही दूसरी तरफ "कश्मीर फाइल्स" देखकर भारत माता की जय बोलते हमारे देश के लोग,,

राजनीतिक परिणामों से साफ है आज भाजपा पूरे देश में अजेय पार्टी बनकर उभर रही है, यूपी में इस बार होली के रंगों के साथ लोकतंत्र के रंगों से भी होली खेली जा रही है,

खैर भारतीय जनता पार्टी को इस अदभुद विजय के लिए हार्दिक बधाई, लेकिन यह समय पार्टी के लिए उन्माद का नही बल्कि चिंतन का विषय है, अंदर से खबर है केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी के ही लोगो ने मिलकर हरवा दिया, केशव मौर्य की बॉडी लैंग्वेज भी कुछ ऐसी ही लग रही थी, चुनाव पूर्व और परिणाम के बाद प्रत्याशी के चेहरे के हावभाव का अध्ययन किया जाए तो एक पूरा उपन्यास लिखा जा सकता है,,

खैर, मुझे यूपी की राजनीति से क्या, मुझे तो चिंता मेरे सीधी की है मेरे विंध्य की है , यहां भी अंदर से कई खबरे आती रहती है, अमुक नेता संगठन में इसकी टिकट कटवाने गया है, तो अमुक नेता कही कहते मिल जायेंगे की मैने उनका राजनीतिक कैरियर खत्म करवा दिया, और अब ये बाते अंदर की नही रह गई हैं, आज पार्टी की अंदरूनी कलह भलीभाती देखी जा सकती है महसूस की जा सकती है,,

इस कलह का परिणाम ये है की आज सीधी उपेक्षा का शिकार है, जो नेता एक दूसरे का रचनात्मक सहयोग करके खुद के राजनीतिक कैरियर और सीधी के विकास को चार चांद लगा सकते थे, वो आज अपनी सारी ताकत एक दूसरे पर जुबानी हमले में लगा रहे हैं,, आज से कुछ वक्त पहले तक के सीधी के नेताओ ने सीधी के लिए क्या किया क्या नही किया, इस बहस में नही जाऊंगा, पर फिर तब और अब में जो अंतर दिखाई देता है वो यह है की आज किसी के अंदर सुनने की क्षमता नही रह गई है, हर किसी को वक्ता बनना है, और लोकतंत्र की एक खासियत है की एक लोकतंत्र तभी बेहतर लोकतंत्र में बदल सकता है जब उसके पैरोकार जिव्हा से अधिक कानो का उपयोग करे ।

फाग के साथ कश्मीर फाइल्स भी लोकोत्सव का रूप ले चुकी है, आज होली मिलन समारोह के क्रम में भाजपा कार्यकर्ताओं को सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ल द्वारा आमजनों को नि:शुल्क कश्मीर फाइल्स दिखाई गई, तो वही कुछ दिन पहले बेल्दह में होली मिलन समारोह आयोजित हुआ, सीधी के दूसरे नेताओं ने भी अलग अलग आयोजन किए, अपने लोगों से समर्थकों से, कार्यकर्ताओं से होली मिलन के नाम पर लोकाचार का प्रदर्शन भी किया,,
पर एक बात जो काबिले गौर है, इन आयोजनों का न्योता क्या किसी नेता ने दूसरे नेता को दिया, और दिया भी तो क्या दूसरे नेता इस न्योते में शामिल हुए,, गोपालदास नीरज की कुछ लाइन हैं,

तुम दिवाली बनकर जग का तम दूर करो, मैं होली में बिछड़े हृदय मिलाऊंगा,,

त्योहारों में मेल मिलाप की संस्कृति रही है, जहा पर धुर विरोधी भी एक दूसरे के गाल में गुलाल लगाकर मन का भेद खत्म कर लेते थे,, पर आज वो संस्कृति मिट रही है,,

राजनीतिक चालों, घातो प्रतिघातो के इस दौर में यदि सभी एक दूसरे के गालों में गुलाल मल देते तो क्या ये होली सीधी के लिए सतरंगी नही हो सकती थी,, क्या हम हम एक मुट्ठी रंग भरकर एक दूसरे पर नहीं फेक सकते थे, पलास के फूलो के रंग को हाथो में मलकर क्या दूसरे के गाल नही रंग सकते थे, खुशी के क्षण में क्या क्या चिल्ला चिल्ला कर नही कह सकते थे, "बुरा न मानो होली है" आप इसे "बड़ा होना" कह सकते हैं, पर मैं इसे "संकुचित होना" कहूंगा,,

रंगोत्सव की शुभकामनाएं,, 💐💐

सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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