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सीधी : चेहरे चर्चित चार - नेता अफसर विधिक पत्रकार ........

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।

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👉अजय सिंह " राहुल "✍️
पूर्व नेता प्रतिपक्ष
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अजय सिंह " राहुल " का जन्म 1955 में चुरहट के राव परिवार में हुआ जिनकी प्रारंभिक शिक्षा भोपाल और कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली से हुई।
पढ़ाई के दौरान क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रहते हुए, अपने महाविद्याल के क्रिकेट कप्तान भी थे , इनके पिता स्व अर्जुन सिंह जी प्रदेश के बड़े कांग्रेस नेता थे, उन दिनों वह चुरहट से विधायक होते थे, और सत्ता में बड़े मंत्री, फिर मुख्यमंत्री बने। ऐसे में उनका चुनाव प्रचार, और अन्य जिम्मेदारियां भी युवा अजय सिंह पर होती थी, एक अचानक राजनीतिक घटनाक्रम में इनके पिता जी को पंजाब का राज्यपाल बना दिया गया, तब पार्टी ने इनको चुरहट से प्रत्यासी बना दिया, और ये विधायक निर्वाचित होकर 1985 में पहली बार विधानसभा सदस्य बने, 1990 दूसरी बार विधायक बने लेकिन संयोग से प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई। 1993 में ये अपनी पैतृक सीट छोड़कर तात्कालिक मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के खिलाफ भोजपुर से चुनाव लड़े, वहां इनको पराजय देखनी पड़ी, लेकिन लगातार काफी सक्रिय रहे और फिर 1998 में चुरहट से चुनाव लड़े, और जीतकर मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में पंचायत एवं ग्रामीण विकाश मंत्री बने। अगले चुनाव 2003में फिर पार्टी सत्ता में नही आई, लेकिन अजय सिंह चुरहट में अजेय हो चुके थे ,2008 में सीधी की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया, जब तात्कालिक सांसद चंद्रप्रताप सिंह बाबा अयोग्य हो गए, तब उप चुनाव हुआ, उस चुनाव में कांग्रेस ने मानिक सिंह को प्रत्यासी बनाया, चुनाव बहुत रोचक था जिसमे एक तरफ शिवराज हैलकॉप्टर से ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे थे और भाजपा के बाहरी शीर्ष नेता उपचुनाव अपनी झोली में डालने के लिए लगे हुए थे, तो दूसरी तरफ अजय सिंह और जिले के ही दिग्गज नेता स्व इंदजीत कुमार की जोड़ी ने इतिहास रच दिया, और उस चुनाव को कांग्रेस ने जीत लिया, तब पार्टी ने इनको प्रदेश भर का चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया। फिर अजय सिंह 2008 का विधानसभा चुनाव जीते और 2011 में नेता प्रतिपक्ष बने, 2013 में फिर जीते और फिर 2 साल बाद नेता प्रतिपक्ष बने। लेकिन अजय सिंह का अजेय रथ जो किसी भी रण के इतिहास को बदल देता था, 2014 से उसकी गति न जाने क्यू मंद हो गई, जिससे उनको सतना से लोकसभा चुनाव में पराजय, फिर अपने परंपरागत सीट चुरहट से भी चुनाव हार गए, जो सुनने वाले को अविश्वासनिय था, जो बड़े-बड़े राजनैतिक पंडितों के पेट में नहीं पच पा रही थी। ये चुनाव वाकई अजय सिंह के जीवन भर की राजनैतिक हार थी। लेकिन अजय सिंह प्रदेश के दिग्गज नेता तो थे ही इसलिए पार्टी ने उनको फिर जल्दी ही 2019 के लोकसभा चुनाव में सीधी सीट से प्रत्यासी बनाया लेकिन यहां परिणाम प्रतिकूल थे। खैर इस चुनाव में तमाम बड़े दिग्गज हारे थे, वो हवा ही कुछ अलग थी। अजय सिंह वर्तमान में कोई पद पर न होते हुए भी अपने लोंगो के लिए अपने कार्यकर्ताओं के लिए उतने ही सजग रहते है, जितना जनप्रतिनिधि के रूप में रहते थे। c-19 का दरवाजा आज भी जनता के लिए सदैव खुला रहता है।


बतादें कि भाजपा सांसद चन्द्रप्रताप सिंह बाबा को लोकसभा द्वारा अयोग्य घोंषित करने के उपरांत मानिक सिंह के उप चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की ताकत को अजय सिंह राहुल ने नेस्तनाबूद कर दिया था । कारण कि मानिक सिंह के चुनाव परिणाम पक्ष में होने के बावजूद तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह द्वारा विलंव करने पर अजय सिंह राहुल मतगणना केन्द्र के बाहर आंदोलित हो गये थे , आखिरकार घंटों बाद मानिक सिंह को विजयी प्रमाण पत्र दिलाने में वह कामयाब रहे । यहां खास बात यह रही कि इस उपचुनाव मे अर्जुन सिंह जी सहित कोई कांग्रेस का बड़ा नेता चुनाव प्रचार में नही आया केवल अजय सिंह "राहुल " ने अपने बलबूते लोकसभा सीट जीतकर भाजपा सरकार की ताकत को नाकम करते हुये चुनौती को स्वीकार किया और भाजपा को सिकस्त दिये। तब उस मौके पर कांग्रेस की आलाकमान सोनिया गांधी दिल्ली में राहुल भैया की पीठ थपथपाते हुये कहा " थैंक्स राहुल " इस उप चुनाव में मिली सफलता के कारण उन्हे पार्टी स्तर पर एक बड़े नेता के रूप में पहचान मिली । नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह राहुल द्वारा शिवराज सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सीएम शिवराज के मुंह सूख गये थे ... कोई जवाब नही था ऐसे में सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ल द्वारा मुख्यमंत्री का सदन के भीतर खुलकर बचाव किया गया था । अंत में ... हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था !



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👉 नीलाम्बर मिश्र ✍️
SDM
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रीवा जिले के तिवनी,मनगवां में 1981 को एक शिक्षा विभाग के अकाउंटेंट के घर में जन्मे सीधी के गोपद बनास SDM नीलाम्बर मिश्रा की जीवनी काफी रोचक है।सीधी के बेहद शांत अफसरों में शुमार नीलाम्बर की जीवनी प्रेरणादायक है। नीलांबर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव में ही पूरी की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए रीवा आ गए। रीवा में उन्होंने BSC व विधि में LLB,LLM व M.A. सोशियोलॉजी की पढ़ाई करते हुए MPPSC की तैयारी में जुट गए। पढ़ाई में निपुण नीलांबर अपने लक्ष्य को लेकर दृढ़ संकल्पी थे। पढ़ाई के दौरान ही 2009 की राज्य सेवा आयोग की परीक्षा में सम्मिलित हुए और डिप्टी कलेक्टर बने। 2012 में अनूपपुर जिले में उनकी पहली जॉइनिंग हुई। नीलांबर के संघर्ष की मिसाल और बुलंद हौसलों की ऊँची उड़ान है, जो बयां करती है कि मुश्किल हालात में भी जोश और जुनून के बूते इंसान कामयाबी की सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ सकता है। नीलांबर पढ़ाई को अपने जीवन का हथियार मानते हैं। उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही द्रोणाचार्य बनकर कई प्रतिभागी छात्रों को शिक्षा दी, जिसका नतीजा है कि आज उनके द्वारा पढ़ाए शत प्रतिशत छात्र डिप्टी कलेक्टर,डीएसपी,नायब तहसीलदार से लेकर एसआई, पटवारी, टीचर, कॉन्स्टेबल फॉरेस्ट विभाग जैसे अन्य सरकारी संस्थानों में कार्यरत है।

नीलांबर आज सीधी में बतौर एसडीएम पदस्थ है, जन सेवा के साथ-साथ उनका एक लक्ष्य गरीब व कमजोर वर्ग के होनहार छात्रों को शिक्षित करना है। इसीलिए उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से छात्रों के लिए एमपीपीएससी जैसी मुख्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निशुल्क कोचिंग सेंटर भी स्थापित कर रखी है जिससे कि निर्धन होनहार छात्र अपने हौसलों की उड़ान भर सकें। उनके इस नेक कार्य को लेकर अधिकारी वर्ग समेत जिलेवासी उनकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं।

नीलांबर की सफलता के पीछे के संघर्ष की वो कहानी, जो हर किसी को आगे बढ़ने और कुछ कर दिखाने को प्रेरित करती है। अंत में यही कहूंगा कि आज की तारीख में प्रशासनिक अधिकारी वनना भी वड़ी टेंढीखीर है आप जैसे बिरले अधिकारियों पर जमाना भी हाबी होने की कोशिश करता है किंतु " मौनी बाबा " की गैर मर्जी भला वह कैसे सम्भव ...? वहरहाल लोकतंत्र की लकीर में वक्त के साथ व्यक्ति को ढलना भी आवश्यक है ।


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👉 महेश प्रसाद पाण्डेय ✍️
वरिष्ठ अधिवक्ता

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सीधी जिले के चुरहट तहसील अंतर्गत ग्राम कपुरी वेदौलियान मे 5/8/1941 को जन्मे जिले के वरिष्ठतम अधिवक्ता महेश प्रसाद पाण्डेय जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई इसके बाद माध्यमिक विद्यालय चुरहट में कक्षा 10 तक की पढ़ाई के बाद इंटरमीडिएट कालेज सीधी में प्रवेश लेकर अध्ययन किया।TRS कालेज रीवा से बीए. एल एल बी की पढ़ाई 1966-67 मे उत्तीर्ण कर काली कोट धारण करली , 1967 मे सीधी जिले के जाने माने एडवोकेट स्वर्गीय जे पी खरे जी के देखरेख में वकालत की शुरुआत की तब से आज दिनांक तक विधिक सेवा से अनवरत जुड़े हुए है! श्री पाण्डेय का नाम इस वकालत पेशा में बड़े गौरव के साथ लिया जाता है कारण यह है कि उन्होंने वकालत पेशा को जिया है बडी तन्मयता व लगन से अपने पक्षकार के लिए प्रतिबद्ध रहने वाले एडवोकेट श्री पाण्डेय की छवि एक वेहद ईमानदार व कानूनविद के रूप में सीधी जिले में है, वकालत एवं लाइब्रेरी इनकी जिंदगी रही है! वर्ष 1994 से 2002 तक जिला न्यायालय सीधी मे शासकीय अधिवक्ता के रूप में काम किया है जिसे आज भी एक मिशाल के तौर पर देखा जाता है! वर्ष 1970-71 मे TRS कालेज रीवा में ला के छात्रों को अवैतनिक होकर अध्यापन का कार्य किये है वर्ष 1973_74 से 2001-02 तक संजय गांधी महाविद्यालय सीधी में एक लम्बे काल खंड तक विधि संकाय के छात्रों का अध्ययन अध्यापन का कार्य किया गया, उस दौर के ला पढने वाले लोग बताते हैं कि श्री पाण्डेय जी कभी क्लास मिस नहीं करते थे एवं अपना कोर्स पूरा करके ही छोडते थे कुल मिलाकर यह कहा जाय कि पाण्डेय जी कर्मयोगी थे उन्हें जो जिम्मेदारी मिलती थी उसे पूरी ईमानदारी से पूरा करते थे ! बहरहाल सीधी जिले के अधिवक्ता जगत में श्री पाण्डेय का नाम बडे़ आदर के साथ लिया जाता है उनका कृतित्व एवं व्यक्तित्व युवा वकीलों के लिए प्रेरणादायी है । वंहीं एक मजेदार वाक्या भी खूब वाकिफ है वह आज भी अपना खजाना खुद सम्हालते हैं ... किसी पर जल्दी विश्वास न करना उनकी फितरत में शामिल है यंहा तक कि रोजमर्रा के चीजों की चाभी भी जनेऊ धारण है ।



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👉 अखिलेश पाण्डेय ✍️
वरिष्ठ पत्रकार

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अखिलेश पांडेय का जन्म 1973 में रामपुर नैकिन क्षेत्र के भरतपुर में हुआ, साहित्य और समाज से लगाव बचपन से था, कॉलेज की पढ़ाई स्नातक और कानून की पढ़ाई करने के बाद ही पत्रकारिता के क्षेत्र में जुड़ गए, शुरुआती वर्ष 1994 में ही दैनिक जागरण के संवाददाता बने, जिससे अलग अलग ख्यातिलब्ध लोंगो से पकड़ बन गई, इसी समय क्षेत्र के नेता उस समय के प्रदेश में दिग्गज मंत्री राहुल भइया से निकटता हो गई और अखिलेश पांडेय रामपुर नैकिन के ब्लॉक युवा कांग्रेस के अध्यक्ष हो गए , उधर पत्रकारिता में सच लिखने वाली लेखनी इनको अलग ही खिंच रही थी, फिर 2008 में राज एक्सप्रेस के रिपोर्टर बने, 2010 में दैनिक जागरण के चीफ व्यूरो सीधी बन गए, 2012 में फिर जिला काँग्रेस के उपाध्यक्ष बन गए,2016 में सीधी जिला पंचायत में चुरहट विधायक प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त हुए। इनके पत्रकारिता विशेष इस लिए हो जाती है कि ये शासन द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका पंचायिका के 2001 से 2015 तक संवाददाता भी रहे हैं । एवं 2009 से 2014 तक श्रमजीवी पत्रकार संघ के सीधी जिलाध्यक्ष तथा 2014 से अब तक रीवा संभाग के सम्भागीय अध्यक्ष पद पर निरंतर बने हुये हैं।

दूसरी ओर सामाजिक और संस्कृति से इनको काफी लगाव है अपनी बेटी मान्या के साथ लोककला कार्यक्रमो में काफी सक्रिय रहते है, इन्होंने एक संस्था भी गठित की है जिससे समय समय पर लोककलाओं का प्रोत्साहन करते रहते हैं। पत्रकारिता क्षेत्र में अखिलेश पाण्डेय एक ऐसा चेहरा हैं जिनका अपना अलग अंदाज है जो दो नाव की सवारी करने में सिद्धहस्त है पत्रकारिता के साथ राजनीति की ललक लिए हुए सक्रिय रहते हैं, पत्रकारिता व राजनीति दोनों में कैसे फिट रहना है वह अखिलेश पाण्डेय से सीखा जा सकता है क्योंकि पत्रकारिता का धर्म दलगत राजनीति में रहकर निभाना कितना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन को मुमकिन करना ये अखिलेश पाण्डेय से सीखा जा सकता है , हालांकि इसका लाभ भी मिलता है श्री पाण्डेय ने अपने श्रीमती जी को जिला पंचायत सदस्य बनवा लिए थे किन्तु वे खुद पंचायती राज चुनाव में सफल नहीं हो पाएं सीधी जिले में पत्रकारिता में एक अच्छी सोहरत कमाने वाले श्री पाण्डेय बडे़ खुशमिजाज स्वभाव के है। कुल मिलाकर कम समय में मंजिल हासिल करना ये बड़ी बात है । अंत मे यह कहना चाहूंगा कि अखिलेश पांडेय सीधी के इकलौते ऐसे पत्रकार है, जिनमे कितनी रचनाएं और कितनी कलाएं है इसका आकलन लगाने वाले आज तक सही साबित नहीं हुए है।

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