जबलपुर (ईन्यूज एमपी) हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि विवाहित पुत्री को भी अनुकंपा नियुक्ति हासिल करने का अधिकार है। लिहाजा, संबंधित विभाग तीन माह के भीतर याचिकाकर्ता की शिकायत दूर करे।न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी दिव्या दीक्षित की ओर से अधिवक्ता अनिरुद्ध पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता के पिता स्व. कृष्ण कुमार पांडे जबलपुर में जेल अधीक्षक के अधीनस्थ कार्यरत थे। दो सितंबर, 2007 को कार्य के दौरान उनका निधन हो गया। इसके बाद 21 सितंबर, 2019 को याचिकाकर्ता की मां कृष्णा पांडे का भी निधन हो गया। याचिकाकर्ता माता-पिता की इकलौती संतान है। उसका विवाह 2010 में हुआ था। माता-पिता के निधन के बाद याचिकाकर्ता ने जेल विभाग में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। लेकिन उसका आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया गया कि वह विवाहित है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनिरुद्ध पांडे ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद-14 के अंतर्गत समानता का अधिकार वर्णित है। यह मामला समानता के अधिकार के उल्लंघन की परिधि में आता है। सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच के न्यायदृष्टांत की रोशनी में इस तरह लिंगभेद करते हुए अनुकंपा नियुक्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने पूरा मामला समझने के बाद याचिकाकर्ता के हक में आदेश पारित कर दिया। जिसमें साफ किया गया कि महानिदेशक, जेल व जेल अधीक्षक, जबलपुर याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर तीन माह के भीतर समुचित निर्णय लें। इस तरह विवाहित होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करना अनुचित है।