भोपाल(ईन्यूज एमपी)-घर-घर बिजली पहुंचाने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'सौभाग्य योजना' में मध्य प्रदेश में इतनी ज्यादा गड़बड़ियां हुई हैं कि मध्य प्रदेश सरकार जांच करने में खुद को असहाय महसूस कर रही है। अब तक की जांच में नौ इंजीनियरों से 12 करोड़ रुपए की रिकवरी के आदेश दिए जा चुके हैं। जांच का दायरा दो जिलों से बढ़कर लगभग एक दर्जन जिलों तक फैल चुका है। इसमें मैदानी गड़बड़ियों के साथ वित्तीय अनियमितताएं भी ज्यादा हुई हैं। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि इस जांच को किसी स्वायत्त समिति के हवाले कर दिया जाए या किसी रिटायर्ड महालेखाकार के नेतृत्व में एक टीम बनाकर जांच का जिम्मा सौंपा जाए। डिंडौरी और मंडला में दीनदयान योजना के पुराने ट्रांसफार्मर को निकालकर सौभाग्य योजना में लगा दिया गया। डिंडौरी जिले की अमरपुर जनपद पंचायत के गांव में सौभाग्य योजना के तहत बिछाई गई लाइन पहली बारिश में ही धराशाई हो गई। ग्राम लखनपुर और उसके मजरे-टोले में सौभाग्य योजना के पोल और ट्रांसफार्मर बारिश के कारण गिर गए थे। जांच में पता चला कि पोल लगाने में कांक्रीट का इस्तेमाल ही नहीं किया गया था। मात्र दो जिले मंडला और डिंडौरी के दो अधीक्षण यंत्री सहित नौ इंजीनियरों को सौभाग्य योजना में विद्युतीकरण के काम में करोड़ों की गड़बड़ी करने का दोषी पाया गया है। जुलाई में ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह के निर्देश पर बिजली कंपनी के अफसरों ने जांच की थी और लीपापोती कर सभी दोषियों को बचा लिया था। ऊर्जा मंत्री ने जांच रिपोर्ट को खारिज कर दोबारा 12 इंजीनियरों की टीम बनाकर गांव-गांव और जंगल-जंगल भेजकर भौतिक सत्यापन करवाया तो कहानी कुछ और ही निकली। जांच रिपोर्ट में पता चला कि जितने काम का दावा कर भुगतान किया गया, वह काम हुआ ही नहीं। कहां ट्रांसफार्मर लगाए गए, उसका ब्योरा भी नहीं मिला। घटिया सामग्री और दूसरी योजनाओं के ट्रांसफार्मर लगाकर करोड़ों के बिल निकाल लिए गए। इस गड़बड़ी के लिए सरकार ने मंडला के तत्कालीन अधीक्षण यंत्री टीके मिश्रा और अधीक्षण यंत्री डिंडौरी अशोक निकोसे को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है। विद्युतीकरण योजना के तहत दो लाख रुपए तक के कार्य ई-टेंडर के माध्यम से कराए जाने का नियम है। इस नियम को शिथिल कर राज्य सरकार ने सौभाग्य योजना के पांच लाख रुपए तक के काम ऑफलाइन टेंडर से कराए जाने की अनुमति दी थी पर अधीक्षण यंत्री के स्तर पर 25 लाख रुपए तक के काम को पांच-पांच लाख रुपए में बांटकर चुनिंदा ठेकेदारों को उपकृत कर दिया गया। इसके विज्ञापन भी नहीं निकाले गए।