भोपाल(ईन्यूज एमपी)-समयबद्ध पदोन्नति व सातवें वेतनमान की मांग को लेकर प्रदेश के सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के 3300 चिकित्सा शिक्षक अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। वह 9 जनवरी से काम नहीं करेंगे। इसके पहले सभी कॉलेजों के शिक्षक अपने-अपने डीन को इस्तीफा सौंप देंगे। इसी कड़ी में बुधवार को जीएमसी भोपाल व एमजीएमसी इंदौर के शिक्षकों ने इस्तीफा सौंप दिया है। भोपाल के 290 शिक्षकों ने डीन को इस्तीफा सौंपकर कहा है कि वह इमरजेंसी में भी काम नहीं करेंगे। इससे मरीजों की फजीहत तय है। ऑपरेशन टलेंगे। ओपीडी में भी मरीजों का इलाज जूनियर डॉक्टरों के भरोसे रहेगा। इसके पहले चिकित्सा शिक्षकों ने इन्हीं मांगों को लेकर पिछले साल 17 सितंबर को आंदोलन किया था। 30 सितंबर को सामूहिक इस्तीफा देने का एलान किया था। आंदोलन के दिन ही मुख्यमंत्री की ओर से भेजे गए एक प्रतिनिधिमंडल ने मांगें मानने का भरोसा दिलाया था। साथ ही मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात कराने की बात कही थी। अभी तक चिकित्सा शिक्षकों ने कहा कि अभी तक उनकी न तो मुख्यमंत्री से मुलाकात हो पाई है न ही उनकी मांगें पूरी हुई हैं। मप्र मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के सचिव डॉ. राकेश मालवीय ने बताया इस बार आर-पार की लड़ाई होगी। जब तक मांगें नहीं मानी जाएंगी चिकित्सा शिक्षक काम पर नहीं लौटेंगे। चिकित्सा शिक्षकों की मांगें - सहायक प्राध्यापक, सह प्राध्यापक, प्राध्यापक को 13 साल व प्रदर्शक-ट्यूटर को 16 साल की सेवा के बाद क्रमिक उच्चतर वेतनमान जनवरी 2016 से दिया जाए। - विसंगतियां दूर कर 1 जनवरी 2016 से सातवां वेतनमान दिया जाए। नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) भी सातवें वेतनमान के अनुरूप दिया जाए। - सभी सरकारी विभागों में चाइल्ड केयर लीव महिलाओं की दी जा रही है, जबकि चिकित्सा शिक्षा विभाग में बंद कर दी गई है। इसे फिर शुरू किया जाए। - चिकित्सा शिक्षकों को सिर्फ 3300 रुपए चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती है, जबकि अन्य विभागों में इलाज में जितना खर्च होता है, उतनी राश्ाि दी जाती है। - चिकित्सा शिक्षकों को ग्रेच्युटी नहीं मिल रही है। - राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत सभी विभागों के अधिकारी-कर्मचारियों को पेंशन दी जाती है पर चिकित्सा शिक्षा विभाग इसमें शामिल नहीं है।