भोपाल(ईन्यूज एमपी)-प्रदेश में छह हजार नए मोबाइल टावर लगाने का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकार ने मप्र नगरपालिका (अस्थाई टावर संस्थापन एवं अधोसंरचना) नियम 2012 में संशोधन कर नई दूरसंचार नीति 2019 नाम से लागू कर दी है। अब सरकारी इमारतों की छत व जमीन पर मोबाइल टावर लगाए जा सकेंगे। इसके लिए नगर निगम आयुक्त नहीं, बल्कि कलेक्टर अनुमति देंगे। नगरीय विकास विभाग ने नियमों से जुड़े संशोधन 14 नवंबर से लागू कर दिए हैं। नई नीति से सरकारी अस्पतालों, स्कूलों और खेल मैदानों को दूर रखा गया है। अभी निजी जमीन या छत पर टावर लगाए जा सकते हैं। 23 फरवरी को बनी थी नीति, संशोधनों के साथ अब लागू हुई राज्य सरकार ने 23 फरवरी 2019 को नई दूरसंचार-इंटरनेट सेवा, वायर लाइन वायरलेस आधारित वाइस या डाटा पहुंच सेवाओं के लिए नीति-2019 लागू की थी। नगरीय विकास विभाग ने नियमों से जुड़े संशोधन जारी कर दिए है। केवल 15 दिन के नोटिस की मोहलत मोबाइल टावर लगाने पर सुरक्षा को खतरा या जानमाल के नुकसान की संभावना होने पर 15 दिन पहले टेलीकॉम कंपनी को नोटिस देना होगा। इसके बाद टॉवर हटाने के अधिकार कलेक्टरों के पास रहेंगे। टावर हटाने के लिए नोटिस के बाद 90 दिन की अवधि तय रहेगी। बॉण्ड से तय होगी जिम्मेदारी मोबाइल टावर से होने वाले किसी भी हादसे के लिए टेलीकॉम कंपनियों की सीधी जिम्मेदारी होगी। इसके लिए इंडेमिटी बॉण्ड (क्षतिपूर्ति बंधपत्र) भरवाया जाएगा। ये बॉन्ड टेलीकॉम कंपनी और नगरीय निकाय के बीच होगा। टॉवर के हादसे से किसी तरह का हर्जाना चुकाने के लिए बॉण्ड के मुताबिक टेलीकॉम कंपनी का जिम्मा होगा। साफ है कि अगर कोई घटना होगी तो सरकार या कलेक्टर की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। यहां लग सकेंगे टावर किसी भी विभाग की सरकारी जमीन, सार्वजनिक उपक्रम, विकास प्राधिकरण, नगर निगम, पालिका और आयोग की छतों पर। इसके लिए कलेक्टर की मंजूरी, संस्थान की सहमति, कंसल्टेंट का सुरक्षा प्रमाण पत्र जरूरी होगा। टावर लगाने पर 20% शुल्क नई नीति के मुताबिक टावर के लिए कलेक्टर गाइडलाइन पर दर तय होगी। संबंधित क्षेत्र में जमीन की गाइडलाइन के मूल्य के 20 फीसदी राशि जमा करना होगी। अभी पुराने नियमों में शुल्क 25 हजार से 1 लाख रुपए तक है।