भोपाल(संदीप सिंह गहरवार)- भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुके अपेक्स बैंक एवं सहकारिता विभाग के अफसरों की जुगलबंदी ने सहकारिता की साख पर ऐसी कालिख पोती है कि देख कर कोई भी दांतों तले उंगली दबा ले। अपेक्स बैंक के अधीन जिला बैंक भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक द्वारा किसानों की खून पसीने की 1000 करोड़ की राशि चिटफंड कंपनियों पर लुटाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि इस संपूर्ण मामले में अपैक्स बैंक के अफसरों की संलिप्तता उजागर न हो इसलिये मामले को दबाने के लिए भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक के 118 करोड़ के घोटाले में फौरन कार्यवाही करते हुए भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक के तत्कालीन सीईओ आरएस विश्वकर्मा को निलंबित कर दिया। इस मामले की जांच कमेटी में भी उन दागी अफसरों को रखा गया जिन पर खुद भ्रष्टाचार की जांच लंबित है। ऐसे में उक्त गड़बड़ी को लेकर अपेक्स बैंक के प्रबन्ध संचालक से लेकर प्रमुख सचिव सहकारिता सहित तमाम अफसर कितने गभीर है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस पूर्ण मामले में सबसे बड़े दोषी भोपाल कोऑपरेटिव सेंट्रल बैंक के संचालक मंडल और प्रबंध संचालक के साथ-साथ अपेक्स बैंक के प्रभारी प्रबंध संचालक प्रदीप नीखरा और अपेक्स बैंक के फंड मैनेजमेंट कक्ष के उप प्रबंधक वित्त आरव्हीएम पिल्लई भी बड़े जिम्मेदार हैं । सूत्र बताते हैं कि अपेक्स बैंक के प्रभारी प्रबन्ध संचालक प्रदीप नीखरा और अपेक्स बैंक के फण्ड मैनेजमेंट कक्ष के सहायक महाप्रबंधक एवं उप प्रबंधक की मिलीभगत से ही 1000 करोड़ की राशि का आहरण भोपाल बैंक द्वारा किया गया और अपेक्स बैंक द्वारा इस सम्बंध में कोई कार्रवाई नहीं कि गई। जबकि सहकारी अधिनियम की धारा 47-ए/ क (1) के प्रावधान के अनुसार ऑफिस बैंक का यह दायित्व था कि वह 1000 करोड़ के गलत आहरण को रोकता। इसके बावजूद अपेक्स बैंक के अफसरों द्वारा इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया। हलाकि आयुक्त सहकारिता एवं पंजीयक सहकारी संस्थाएं ने भोपाल सहित प्रदेश के सभी जिला सहकारी बैंकों को आदेश दिया है कि वह अपनी अतिरिक्त राशि अपेक्स बैंक में ही रखें। इसके साथ ही मध्यप्रदेश शासन वित्त विभाग के द्वारा भी यह आदेश जारी किया गया है कि प्रदेश के सभी शासकीय विभाग/ उपक्रम अपनी राशियां सहकारी बैंक में जमा करें । इन दोनों आदेश के बावजूद अपेक्स बैंक के अधीनस्थ भोपाल बैंक द्वारा करीब 1000 करोड़ का आहरण कर पूरा रुपया चिटफंड कंपनियों पर लुटाना तथा इस आहरण को रोके जाने के लिए अपेक्स बैंक के अधिकारियों द्वारा कोई प्रयास न किया जाना यह दर्शाता है कि अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक से लेकर फण्ड मैनेजमेंट कक्ष के अधिकारी भी आंख मूंद कर इस खेल में बराबर के हिस्सेदार हैं। प्रबंध संचालक को जाता है निरीक्षण प्रतिवेदन : अपेक्स बैंक द्वारा प्रत्येक वर्ष भोपाल बैंक का निरीक्षण किया जाता है। यह निरीक्षण प्रतिवेदन बैंक के प्रबंध संचालक को प्रस्तुत होता है। अपेक्स बैंक का मुख्य शाखा प्रबंधक जिला बैंक का संचालक होता है। सहकारी अधिनियम की धारा 49(9)(ए) एवं (बी) के अनुसार जिला बैंक की विवादित बैठक 27-12-18 की प्रोसिडिंग की प्रति भी अपेक्स बैंक को 30 दिवस में मिलती है। इतना ही नहीं जिस बैठक में गलत नियोजन की पुष्टि की गई उसकी अगली बैठक में अपेक्स बैंक के शाखा प्रबंधक शामिल थे और उन्होंने गत बैठक की कार्यवाही की पुष्टि में सहमति व्यक्त की । जबकि अपेक्स बैंक को पूरा अधिकार था और अपेक्स बैंक अधिकारियों की यह डियुटी थी कि वह जिला बैंक के गलत आहरण को रोके। किस काम का फण्ड मैनेजमेंट कक्ष : अपेक्स बैंक द्वारा फण्ड मैनेजमेंट के लिए एक फंड मैनेजमेंट कक्ष बनाया हुआ है जिसमें सहायक महाप्रबंधक और अन्य अधिकारी कर्मचारी रखे हैं। उस पर बैंक द्वारा लाखों रुपए खर्च किया जा रहा है। इसके बावजूद भी अपेक्स बैंक की निगरानी में इतना बड़ा घोटाला होना और उस पर कोई कार्रवाई न होना की सवाल खड़े कर रहा है। नाबार्ड ने पकड़ी गलती : दरअसल अपेक्स बैंक के अधीन भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक द्वारा 1000 करोड़ के गलत आरण और चिटफंड कंपनियों पर लुटाने के मामले को नाबार्ड के निरीक्षण प्रतिवेदन ने उजागर कर दिया । नाबार्ड द्वारा इस आहरण पर आपत्ति उठाए जाने के बाद भी बैंक द्वारा दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस तरह की मनमानी : जांच में सामने आया है कि जिला बैंक भोपाल की विनियोजन नीति की कंडिका 3 के अनुसार बैंक नॉन एस एल आर विनियोजन में केवल विभिन्न राष्ट्रीयकृत /शेड्यूल/प्राइवेट क्षेत्र की उच्च प्रतिष्ठित एवं अन्य मान्य बैंकों में ही विनियोजन कर सकता था। इस प्रकार बैंक के द्वारा आलोच्य कमर्शियल पेपर का विनियोजन बैंक की तत्समय प्रभावी विनियोजन नीति के विपरीत है। इसके अतिरिक्त बैंक के द्वारा कोई एक्सपोज नार्म्स भी नहीं बनाए गए जिससे उच्च प्रतिष्ठित एवं मान्य बैंकों का निर्धारण होकर उसमें अधिकतम जमा की सीमा निर्धारित की जाए।