ग्वालियर - विश्व विख्यात मोहनवीणा वादक पं. विश्व मोहन भट्ट ने राग УगावतीФ में सिलसिलेवार बढ़त, आलाप जोड़ झाला के साथ मोहनवीणा वादन किया तो सम्पूर्ण वातावरण सुरीला हो गया। इस साल के तानसेन समारोह की पहली संगीत सभा अर्थात बुधवार की देर रात की सभा के अंतिम कलाकार के रूप में पं. विश्व मोहन भट्ट की प्रस्तुति हुई। उन्होंने द्रुत लय में प्रसिद्ध बंदिश Уनीर भरन कैसे जाऊँ सखि रीФ गाकर फिर बजाकर सुनाई तो सुधीय रसिक मोहनवीणा के मोहपास में बंधे दिखे। संगीत के विलक्षण साज मोहनवीणा का सृजन और उसके एक प्रकार से पर्याय बन चुके पं. विश्वमोहन भट्ट को वर्ष 2013-14 के राष्ट्रीय तानसेन सम्मान से इस साल विभूषित किया गया है। सुप्रतिष्ठित सितार वादक स्व. पं. रविशंकर के शिष्य रहे पं. विश्वमोहन भट्ट के सुरीले वादन और ध्वन्यात्मक उत्कृष्टता सुनते ही बन रही थी। उनके द्वारा प्रस्तुत माधुर्य युक्त आलापचारी से सम्पूर्ण वातावरण सुरमय हो गया। उन्होंने राग तिलक कामोद में तीन ताल में विलंबित दो गतें बताईं। उन्होंने लोरी Уझूला झुलाऊँ लोरी सुनाऊँФ की ध्वनि निकालकर संगीत रसिकों को वात्सल्य रस में भिगो दिया। पं. विश्वमोहन भट्ट ने अपने वादन का समापन राग नट भैरव की तीन ताल में निबद्ध द्रुत बंदिश से किया। आपके साथ तबले पर संगत बनारस घराने के युवा तबला वादक हिमांशु महंत ने की। उस्ताद आशीष खाँ के सरोद वादन से गूँजा सम्पूर्ण प्रांगण कालजयी संगीत साधक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ के पौत्र और सेनिया मैहर घराने के प्रतिनिधि कलाकार उस्ताद आशीष खाँ के सितार वादन से तानसेन समारोह के विशाल प्रांगण में मीठी-मीठी धुन समा गई। उन्होंने अपने वादन के लिये राग बागेश्री का चयन किया। काफी ठाठ से उत्पन्न राग अपना प्रभाव तुरंत छोड़ता है। कोमल गंधार और निषाद (कोमल) तथा पंचम का अल्प प्रयोग इस राग की विशेषता है। इस राग में उनके द्वारा आलाप जोड़ झाला से सिलसिलेवार राग की प्रस्तुति सालों तक संगीत रसिकों के दिल में समाई रहेगी। उन्होंने राग झिझोटी में तीन ताल में गत प्रस्तुत की। उनके साथ सरोद पर उनके भतीजे सिराज अली खाँ ने साथ दिया। तबले पर संगत सुप्रसिद्ध तबला वादक सोमेश नंदी की ओजपूर्ण संगति देखते और सुनते ही बन रही थी। उस्ताद आशीष खाँ इस सभा के पहले कलाकार थे। Уग्वालिन घूँघट वाली........Ф पहली संगीत सभा के दूसरे कलाकार हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे पुरानी ध्रुपद शैली के ख्यातिनाम गायक बृजभूषण गोस्वामी थे। सुप्रसिद्ध ध्रुपद गायक दरभंगा घराने के गायक पं. विदुर मलिक के सानिध्य में रहकर गायिकी पर अधिकार करने वाले पं. बृजभूषण गोस्वामी ने अपने गायन के लिये राग विहाग का चयन किया। मधुर आवाज के धनी पं. गोस्वामी ने इस राग में पहले नोम-तोल के आलाप किए। गमक युक्त आलापचारी उनके गायन में स्पष्ट सुनाई दे रही थी। चौताल में निबद्ध ध्रुपद Уशुभ दिनФ उन्होंने प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने राग मालकोष में धमार प्रस्तुत किया। कोमल भावों की अभिव्यक्ति के राग मालकोष में बंदिश Уग्वालिन घूँघट वालीФ प्रस्तुत की। विभिन्न लयकारी से युक्त बृजभूषण गोस्वामी का ध्रुपद गायन विलक्षण बन गया। उन्होंने अपने गायन का समापन राग अभोगी कानड़ा में बंदिश Уजय गंगा दायिनीФ के गायन से किया। उनके साथ पखावज पर पं. मोहन श्याम शर्मा तथा सारंगी पर श्री कुलभूषण गोस्वामी ने संगत की।