मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 28 नवंबर के बाद के नौ दिन यानि 7 दिसंबर तक ज्यादा सुकून के थे या फिर 7 दिसंबर की शाम साढ़े पांच बजे के बाद का समय। यदि भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं से कोई पूछे तो उत्तर दोनों ही तरफ से मिलेगा कि थोड़ी खुशी, थोड़ा गम...जैसे हालात हैं। यह एग्जिट पोल नाम की जो रंग-बिरंगी चिडिय़ा है, वह जब आंखों के सामने आती है तो कभी उसके रंगीन पंख मन को लुभाते हैं तो कभी धुंधली सी चिडिय़ा मन को विचलित करने वाली होती है। दोनों ही पार्टी के नेताओं खासतौर पर शीर्ष नेतृत्व की हालत शायद इससे जुदा नहीं है। 7 दिसंबर को एग्जिट पोल आने के बाद दोनों ही दलों के नेता करवटें बदलने को मजबूर हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि कांग्रेस के नेता की हालत करवटें बदलते रहे सारी रात हम ... जैसी है। सत्ता के लिए करवटें बदलते हैं। चैन नहीं है। कमलनाथ ने पलटवार किया था कि करवटें तो शिवराज बदलेंगे 11 दिसंबर के बाद। फिलहाल तो दोनों ही दलों के नेताओं को एक पल लगेगा कि सरकार बन रही है, तो दूसरी तरफ सरकार बनने का गणित गड़बड़ाएगा फिर नींद खुलेगी और हकीकत का सामना करने की समझाइस देगा वक्त। सपना सरकार बनने का दिखेगा तो चेहरे पर खुशी की लहर बिखर जाएगी और सपना विपक्ष की तरफ इशारा करेगा तो आंखों से नींद ओझल हो जाएगी। पर समस्या यह है कि आपबीती किसको सुनाएं। अपनी ही पार्टी के नेताओं के सामने सपने की हकीकत बयां करने में डर लगेगा क्योंकि सुख में सभी साथ हैं, दुखों की राह अकेले ही तय करनी है। अच्छा तो यह है कि 11 दिसंबर के पहले दोनों ही दल यह मानकर चलें कि सरकार बनाने के सपने सच हो गए हैं और मन को झूमने दिया जाए। एग्जिट पोल ने दोनों ही पार्टियों के नेताओं को खुश रहने की संजीवनी जो दी है। कोई कांग्रेस की सरकार बना रहा है तो कोई भाजपा को ताज पहना रहा है। कोई कमलनाथ के सपनों में पंख लगा रहा है तो कोई शिवराज के मन को मचलने पर मजबूर कर रहा है। किसी का वनवास खत्म हो रहा है तो किसी को चौथी पारी मिलने का पूरा भरोसा है। मौत से पहले डर किस बात का। मौत शाश्वत सत्य है। मौत के पहले जिंदगी है और मौत के बाद भी जिंदगी है। भारत की भूरि-भूरि प्रशंसा अगर की जाती है तो इसीलिए कि यहां दर्शन गली-गली में बिखरा पड़ा है। घोर अंधकार में डूबे किसी गांव का फटे चीथड़ों में सिकुड़ता दरिद्र इंसान भी इस ज्ञान से ओतप्रोत है और सिंहासन पर बैठे राजा भी इस ज्ञान से सराबोर रहे हैं। इसे राजनीति में फिट करें तो यूं कह सकते हैं कि सरकार जाने में डर किस बात का। पार्टी विशेष की सरकार बनने से पहले भी सरकार थी और पार्टी विशेष की पारी खत्म होने के बाद भी प्रदेश में सरकार रहेगी। आज जो सरकार में नहीं हैं,उनके दिन भी अच्छे ही रहे। कल जो सरकार में नहीं रहेंगे, उनके दिन भी अच्छे रहेंगे। फिर अफसोस किस बात का, दुख किस बात का? भगवान राम अयोध्या के राजा रहे तब भी जनता नहीं बदली और भगवान राम वन में रहे तब भी जनता का स्वभाव नहीं बदला। जनता की अपनी प्रकृति है, सो उनकी चिंता छोड़ो और जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए..को मूलमंत्र मानकर प्रसन्न रहने का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहिए। और नेताओं में तो यह गुण कूट-कूट कर भरा होता है कि वे सत्य को स्वीकारने में देर नहीं करते। यदि चुनाव जीत गए तो उपलब्धियों का गुणगान कर जीत का श्रेय लेने में पीछे नहीं रहते और अगर जीतते-जीतते रह गए तो हार को स्वीकार कर मतदाताओं का आभार जताने में भी देर नहीं करते। भाजपा के लिए तो भगवान राम आदर्श हैं सो राम वन में रहें तब भी लोक कल्याण के भाव से तत्पर हैं। भगवान राम अयोध्या में रहें और राजसिंहासन पर बैठे हैं तब भी लोक कल्याण के लिए तत्पर हैं। शिवराज सिंह चौहान तो खुद भी आध्यात्मिक मनोबल के इतने धनी हैं कि जब वे मंच से चेतन मन की व्याख्या करते हैं तो साधु-संत भी उनकी व्याख्या सुनकर एक बार तो आश्चर्य में पड़ ही जाते होंगे कि यह राजा है, संत है या फिर फकीर है? यह शासक है या फिर जनता का सेवक है? यह प्रदेश का मुखिया है या फिर आम आदमी है? इसलिए शिवराज सत्य के करीब हैं, यह माना जा सकता है। उन्होंने जनता की खूब सेवा की है, इसलिए जनता की खुशी के लिए अगर सत्ता से विछोह का विषपान करना पड़े तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो मुख्यमंत्री बनने से पहले भी सेवा करते रहे हैं और बाद में भी करते रहेंगे, इस बात में शायद किसी को भी शक नहीं होगा। और सपने हुए सच तेरे, झूम ले मन मेरे ...पर पहला हक भी उन्हीं का है। क्योंकि किसान हों या आधी आबादी बहिनें, भांजियां और बेटियां, कर्मचारी हों या फिर अधिकारी, मजदूर हों या फिर मालिक, व्यापारी हों या फिर ठेकेदार...कोई भी वर्ग यह नहीं कह सकता कि शिवराज ने उनके लिए कुछ नहीं किया। इसलिए 11 दिसंबर को मतगणना से पहले का समय अगर किसी को झूमने की आजादी देता है तो वह शिवराज ही हैं। अब बात करें कांग्रेस की। तो एग्जिट पोल ने उन्हें भी झूमने का पूरा मौका दिया है। कमलनाथ का एक ही सपना बचा है कि जिस मध्यप्रदेश की बदौलत उन्हें जीवन में सब कुछ मिला है, उस मध्यप्रदेश की जनता का कर्ज उतारने के लिए सेवक बनकर उसकी सेवा में पलक-पावड़े बिछा दें। हमने सिंहस्थ के दौरान कमलनाथ को देखा कि भरी धूप में दोपहर में हर संत की कुटिया में पहुंचे बिना उन्होंने सांस नहीं ली। एयरकंडीशन में रहने वाले कमलनाथ का चेहरा तेज धूप में मुरझा गया, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। हर संत का आशीर्वाद लेकर ही माने। हमने उन्हें मध्यप्रदेश चुनाव के समय दिन-रात सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते देखा है। सपना बस एक कि शिवराज को हटाओ, कांग्रेस की सरकार बनाओ। ताकि प्रदेश का मुखिया बनकर उन्हें जनता की सेवा करने का मौका मिल सके। इससे वे किसानों के लिए खेती को लाभ का धंधा बना पाएंगे। प्रदेश में उद्योगों की गंगा बहा पाएंगे। हर हाथ को रोजगार देकर हर घर में खुशी ला पाएंगे। पिछले पंद्रह साल में जो नहीं हो पाया, वह सब सच कर पाएंगे। नया सवेरा लाएंगे, मध्यप्रदेश में सबको सुखी बनाएंगे। पर यह बात कुछ वैसी ही है कि अयोध्या में राजा भरत ने जनता पर सब कुछ लुटा दिया पर जनता ने भरत के राज में कभी खुशहाल जीवन बिताने का दम नहीं भरा। फिर जब राम अयोध्या के राजा बने तो एक धोबी ने उनकी पत्नी पर ही लांछन लगाकर उन्हें वन भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यानि कि जनता न भरत की हुई और न ही राम की। जनता के कष्ट न पहले कम हो पाए और न ही बाद में कम हुए। फिलहाल तो एग्जिट पोल कमलनाथ को भी यह चार रातें झूमने की पूरी आजादी देती हैं। क्योंकि उन्होंने भी पंद्रह साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सत्ता के मुकाम तक पहुंचाने के लिए तन, मन, धन से पूरा योगदान दिया है। खास तौर से प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें न दिन में चैन रहा और न रात में नींद आई। जब भी वे मुखातिब हुए तो उन्होंने बता दिया कि अध्यक्ष बने उन्हें तीस दिन हो गए, पचास दिन हो गए, सौ दिन हो गए। पूरी कांग्रेस को एकजुट रखने की चुनौती से पार पाने का संघर्ष कमलनाथ ने किया। एग्जिट पोल ने उनकी मेहनत और कांग्रेस की एकजुटता पर मोहर लगा दी है। बाकी बाद में कुछ भी हो। एग्जिट पोल कोई गारंटी नहीं लेते और न ही उन पर कोई मानहानि का केस दर्ज करा सकता है। पर पंद्रह साल बाद पहली बार कांग्रेसियों के चेहरे पर एग्जिट पोल के बाद खुशी की चमक देखी जा सकती है। सो कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह सहित सभी कांग्रेस नेताओं को 11 दिसंबर के पहले तक की रातों में सपनों के सच होने और झूमने में कोई कंजूसी नहीं बरतनी चाहिए। पर फिलहाल तो सपने हुए सच तेरे, झूम ले मन मेरे ...पर हक मध्यप्रदेश में दोनों ही दलों भाजपा-कांग्रेस का बनता है सो 11 दिसंबर से पहले बाकी समय को जिंदगी की बेहतरीन समय बनाने का समय है। 11 दिसंबर को जो होगा सो होगा, फिर 12 भी आएगी। फिर किसी ने जोड़ा है कि 13 भी आएगी। पर 11 को हिसाब-किताब सामने आ जाएगा। जोड़-तोड़ की नौबत आती है या फिर पूरा बहुमत मिलता है, सारी तस्वीर सामने होगी। अगर भाजपा की सरकार बनी तो शिवराज लगातार चौथी बार सीएम बनने का रिकार्ड बनाएंगे। अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो जनता जता देगी कि शिवराज ने काम अच्छा किया पर मन को कुछ और ही मंजूर था। फिर देखने वाली बात यह होगी कि मुख्यमंत्री की कुर्सी किसकी किस्मत में आती है। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य या फिर दिग्विजय सिंह की पसंद के नाम पर नामदार मुहर लगाते हैं। खैर फिलहाल तो भाजपा, कांग्रेस और भाग्यविधाता, अन्नदाता, मतदाता सभी को अपने-अपने सपनों को सच मानकर झूमना चाहिए, गुनगुनाना चाहिए कि सपने हुए सच तेरे, झूम ले मन मेरे।