भोपाल (ईन्यूज़ एमपी)- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंचने से सरकार ने राजनीतिक और आर्थिक दोनो मोर्चों पर राहत की सांस ली है। पिछले तीन हफ्तों में कच्चे तेल की कीमतों में 21 फीसद तक की गिरावट ने विपक्षी दलों से महंगे पेट्रोल व डीजल का मुद्दा छीन लिया है। दूसरी तरफ, राजकोषीय घाटे का 3.3 फीसद का लक्ष्य हासिल करने में भी सरकार को अब सहूलियत होगी। वित्त मंत्रालय मानने लगा है कि अगर कच्चा तेल चालू वित्त वर्ष के शेष महीनों के दौरान मौजूदा स्तर पर भी बना रहे, तब भी राजकोषीय प्रबंधन की काफी मुश्किलें दूर हो जाएंगी। इस वर्ष 16 अक्टूबर से शनिवार बीते शनिवार तक दिल्ली में पेट्रोल 4.94 रुपये और डीजल 3.11 रुपये प्रति लीटर सस्ता हो चुका है। विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया से गुजर रहे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान में भी बीते 25 दिनों में पेट्रोल व डीजल की कीमतों में औसतन इतनी ही गिरावट आई है। यह एक वजह है कि अभी तक इन राज्यों में पेट्रोल व डीजल कीमतें कोई बड़ा मुद्दा बनती नहीं दिख रही है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारी उम्मीद जता रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें फिलहाल इसी स्तर पर बनी रहेंगी। इस नरमी के पीछे अमेरिका में कच्चे तेल के उत्पादन में खासी बढ़ोतरी के साथ ही इराक व इंडोनेशिया जैसे दूसरे अहम तेल उत्पादक देशों की तरफ से उत्पादन को बढ़ाना देना भी है। इस वर्ष जनवरी के बाद से ही कच्चे तेल की बढ़ती कीमत सरकार को परेशान करती रही है। आपको बता दें तेल कंपनियों की तरफ से लगातार हो रही वृद्धि के असर को कम करने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेट्रोल-डीजल पर केंद्रीय कर में 2.50 रुपये की राहत का एलान किया था। कई राज्यों ने भी अपनी तरफ से शुल्क में कटौती कर 2.50 रुपये की राहत अलग से दी। भारत ने पिछले वर्ष अपनी जरूरत का 83 फीसद कच्चा तेल आयात किया था। ऐसे में इसकी कीमत में होने वाला मामूली बदलाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था को दूर तक प्रभावित करता है। तेल आयात का बिल बढ़ने से चालू खाता घाटा बढ़ जाता है, जिसका असर महंगाई दर पर भी पड़ता है।