enewsmp.com
Home देश-दुनिया कड़कनाथ पहुंचा भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई, होगी रिसर्च

कड़कनाथ पहुंचा भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई, होगी रिसर्च

जगदलपुर (ईन्यूज एमपी )- मांसाहारियों के लिए खाद्य पदार्थ के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका कड़कनाथ (मुर्गा की प्रजाति) भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई (बार्क) पहुंच गया है। कड़कनाथ का उत्पादन बढ़ाने में लगे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने कृषि अनुसंधान केन्द्र कांकेर से 25 कड़कनाथ मुंबई भेजे हैं। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर कड़कनाथ की प्रोसेसिंग कर सूप, मांस के क्यूब्स और कच्चे मांस (हड्डियों के साथ) को सुखाकर चिकन करी बनाने की विधि सुझाएगा।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. एसके पाटिल ने बताया कि रिसर्च के लिए विश्वविद्यालय ने चार माह पहले भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के साथ अनुबंध किया है। इसी के तहत पिछले सप्ताह ही कांकेर से कड़कनाथ की पहली खेप मुंबई छोड़ने वैज्ञानिक गए थे। उम्मीद है कि जल्द ही रिसर्च पूरा हो जाएगा और कड़कनाथ खाने के शौकीनों के लिए इसका मांस पैकेट में भी आसानी से उपलब्ध होगा। इसे फास्ट फूड के रूप में भी लिया जा सकेगा।

सस्ता एक्यूवेटर बनाने में लगा विश्वविद्यालय

कड़कनाथ प्रजाति की मुर्गी अंडा देती है पर इसका सेचन नहीं करती। इसके चलते अंडा के सेचन के लिए विशेष एक्यूवेटर का उपयोग किया जाता है, जिसे तैयार करने में करीब एक लाख रुपए की लागत बैठती है। कुलपति पाटिल ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय की ओर से करीब 30 हजार रुपए में ही एक्यूवेटर तैयार करने का काम चल रहा है। कहा जा रहा है कि कड़कनाथ की बढ़ती मांग को देखते इसे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक आय का एक प्रमुख स्रोत बनाने की दिशा में तेजी से काम जारी है।

झाबुआ से तीन साल पहले कांकेर लाया गया था

ऐसा माना जाता है कि कड़कनाथ प्रजाति मध्यप्रदेश के झाबुआ की है। यह स्पेशल ब्रीड है। रेगुलर चिकन की अपेक्षा इसमें कम चर्बी होती है। प्रोटीन और ऑयरन की अकिता के कारण भी यह न्यूटीबर्ड बेस्ड माना गया है। लोकल होने के अलावा इसमें बीमारी भी कम आती है। कुलपति के मुताबिक तीन साल पहले झाबुआ से कांकेर लाकर इसका उत्पादन शुरू किया गया था। वर्तमान में दंतेवाड़ा और जगदलपुर में भी इसका उत्पादन किया जा रहा है। अकेले कांकेर में ही कड़कनाथ के हर माह दस हजार चूजे तैयार किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि कड़कनाथ का वजन आम मुर्गे से तीन गुना होता है। इसका खून व मांस दोनों काला होता है।

इनका कहना है

कड़कनाथ मुर्गा की स्पेशल प्रजाति है। प्रोसेसिंग व उत्पादन बढ़ाने के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई को 25 कड़कनाथ भेजे गए हैं। रिसर्च सेंटर से सूप, मांस के क्यूब्स आदि तैयार करने की विधि सुझाने को कहा गया है - डॉ. एसके पाटिल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर

Share:

Leave a Comment