रायसेन : जिले में साल भर हरे चारे के अभाव में दुग्ध उत्पादन में आने वाली कमी को दूर करने के लिए कृषि विभाग की आत्मा परियोजना द्वारा नेपियर ग्रास की नर्सरी तैयार की गई है। इस नर्सरी में तैयार हुई नेपियर ग्रास को समस्त विकासखण्डों में वितरित किया जाएगा। इस घास से दुधारू पशुओं को वर्ष भर हरा चारा मिलेगा और दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होगी। आत्मा परियोजना द्वारा सिलवानी जनपद के सियरमऊ गांव के किसान श्री कुन्दन पटेल के खेत में नेपियर ग्रास की नर्सरी तैयार की जा रही है। यहां पूरी तरह से नेपियर ग्रास तैयार होने के बाद सभी विकासखण्डों में वितरित की जाएगी। इस नर्सरी को तैयार करने वाले किसान श्री कुन्दन पटेल ने गत दिनों नर्सरी का अवलोकन करने पहुंचे कलेक्टर श्री जेके जैन को बताया कि यह घास एक बार तैयार होने के बाद स्वतः कभी नष्ट नहीं होती और काटने के बाद उससे अधिक आकार में पुनः तैयार हो जाती है। कुन्दन ने बताया कि इस घास को खाने के बाद गाय पहले से अधिक दूध दे रही हैं। इस मौके पर उपस्थित उप संचालक कृषि श्री एके उपाध्याय एवं आत्मा परियोजना के उप संचालक श्री रविन्द्र मोदी को कलेक्टर ने नेपियर ग्रास को पूरे जिले में लगाने और उसका उत्पादन बढ़ाने के निर्देश दिए ताकि पशुओं के लिए सुलभता से हरा चारा उपलब्ध हो सके। नेपियर ग्रास की खास बातें नेपियर ग्रास की सबसे खास बात यह है कि इसको खाने के बाद पशु दूध अधिक देते हैं। इस घास के लगने के बाद भूमि का क्षरण भी रूक जाता है क्योंकि इसकी जड़े जमीन को कसके पकड़ लेती हैं। उल्लेखनीय है कि नेपियर घास पशु चाव से खाते हैं जिसकी वजह से प्रति दिन दुग्ध उत्पादन में 0.5 से 1.5 लीटर तक की वृद्धि मापी गई है। विटामिन और मिनरल्स का भण्डार है नेपियर घास में 9.38 प्रतिशत प्रोटीन, 2.25 प्रतिशत कैल्शियम, 0.65 प्रतिशत फास्फोरस सहित विटामिन एवं मिनरल्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी पाचकता 60 से 65 प्रतिशत होती है। नेपियर घास को एक बार लगाने के बाद 5-6 वर्ष तक इसकी उपलब्धता बनी रहती है। जैविक कृषि से ज्यादा लाभ किसान श्री कुन्दन पटेल ने कलेक्टर श्री जेके जैन को अदरक दिखाते हुए बताया कि यह जैविक खाद से उगाया गया है। जैविक खाद के कारण इसका आकार रासायनिक खाद से तैयार अदरक के आकार से ज्यादा बड़ा है। इस अदरक को रासायनिक खाद से उगाए गए अदरक की अपेक्षा अधिक दिनों तक रखा जा सकता है। इसके अलावा श्री कुन्दन पटेल ने आधुनिक तकनीक से की जा रही अन्य फसलों का भी अवलोकन कराया।