भोपाल। Madhya प्रदेश के पौने चार लाख से ज्यादा पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय एक बार फिर बढ़ाने की कवायद शुरू हो गई है। महंगाई के साथ जिला व जनपद पंचायत अध्यक्ष-उपाध्यक्षों की मांग को देखते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने संभावित वित्तीय भार और मौजूदा संसाधनों का आकलन करना शुरू कर दिया है। दो सितंबर को पचमढ़ी में प्रस्तावित भाजपा समर्थित पंचायत प्रतिनिधियों के सम्मेलन में मुख्यमंत्री इस संबंध में एलान कर सकते हैं। दो साल पहले पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय बढ़ाया गया था। भोपाल में हुए जिला व जनपद पंचायत प्रतिनिधियों के सम्मेलन में मानदेन कम होने का विषय उठाया गया था। इसके लिए तर्क दिया गया था कि मानदेय बेहद कम होने के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। जनप्रतिनिधियों का काम विस्तृत होता है और उन्हें लगातार दौरे भी करने होते हैं। जिला पंचायत रतलाम के उपाध्यक्ष डीपी धाकड़ का कहना है कि घर का पैसा लगाकर काम करना होता है। सरपंच घर का काम धंधा छोड़कर पंचायत और ग्रामीणों के काम करता है। उसे जनपद पंचायत दफ्तर भी जाना होता है। ऐसे में 1 हजार 750 रुपए मानदेय कोई मायने नहीं रखता है। सरकार जब विधायकों के वेतन-भत्ते बढ़ाने जा रही है तो पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय पर भी विचार होना चाहिए। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि मानदेय का पूरा इंतजाम राज्य को अपने वित्तीय संसाधनों से करना पड़ता है। केन्द्र सरकार इसके लिए कोई मदद नहीं देता है। पहले पंच को कुछ भी नहीं मिलता था, इसलिए न सिर्फ मानदेय में वृद्धि की गई बल्कि पंचों को बैठक भत्ता देने की शुरुआत भी की। विभाग वित्तीय स्थितियों का आकलन करते हुए तय कर रहा है कि किस तरह मानदेय में वृद्धि की जा सकती है। वैसे विभाग की इच्छा सरपंचों के मानदेय में 500 रुपए तक वृद्धि करने की है। वहीं, जिला व जनपद पंचायत के प्रतिनिधियों को भी 500 से 1000 रुपए मानदेय बढ़ाकर दिया जा सकता है। विभाग की अपर मुख्य सचिव अरुणा शर्मा का कहना है कि जब तक हमें यह पता नहीं लग जाता कि टैक्स से कितनी राशि मिलेगी, तब तक अंतिम रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इतना तय है कि हमारी मंशा जनप्रतिनिधियों के मानदेय में सम्मानजनक इजाफा करने की है।