enewsmp.com
Home मध्य प्रदेश राजस्व वन सीमा विवाद का समन्वय से होगा निराकरण- खरे

राजस्व वन सीमा विवाद का समन्वय से होगा निराकरण- खरे

राजस्व वन सीमा विवाद का समन्वय से होगा निराकरण-श्री खरे
पन्ना 07 सितंबर 15/कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित बैठक में राजस्व भूमि तथा वन भूमि सीमा विवाद के निराकरण की कार्ययोजना तैयार की गई। बैठक में प्रभारी कलेक्टर अनिल खरे ने कहा कि राजस्व वन सीमा विवाद का समन्वय से निराकरण होगा। इस संबंध में शासन द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुरूप कार्यवाही सुनिश्चित करें। वन क्षेत्र में स्थित निजी भूमि पर वन विभाग अपना अधिपत्य समाप्त कर रहा है। इन पर शासन के निर्देशों के अनुसार व्यवस्थापन की कार्यवाही सभी एसडीएम करें। व्यवस्थापन की प्रक्रिया में वनों को किसी तरह की हानि नही होनी चाहिए। आमजनता के हितों तथा वनों के संरक्षण को ध्यान में रखकर पूरी कार्यवाही सुनिश्चित करें। शासन द्वारा चिन्हित वन भूमि राजस्व के खसरे में दर्ज करें।

प्रभारी कलेक्टर ने कहा कि वन, राजस्व सीमा विवाद के कारण विकास कार्यो पर विपरित प्रभाव पड रहा है। भारतीय वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के अनुसार वन भूमि अथवा अनुपयोगी भूमि को आरक्षित वन खण्ड के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है। इसी प्रकार धारा 29 के प्रावधानों के अनुसार राज्य शासन को यह अधिकार प्राप्त है वह किसी वन भ्ूामि को संरक्षित वन घोषित कर सकता है। उन्होंने कहा कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के लागू होने के पूर्व के जिन वन खण्डों का धारा 27 अथवा धारा 34 अ में अधिसूचना जारी करके र्निवनीकरण किया जा चुका है। उसे भी विभाग की कार्य आयोजना में शामिल किया जा सकता है। वन विभाग द्वारा अधिपत्य से मुक्त किए गए क्षेत्र में वन तथा राजस्व अधिकारी मिलकर खसरा क्रमांक अंकित करें। इनमें यदि कोई निजी भूमि स्थित है जो वन क्षेत्र के अन्तर्गत है तो उसका व्यवस्थापन करके वन विहिन क्षेत्र में भूमि स्वामी को भूमि प्रदान की जाए।

बैठक में वन मण्डलाधिकारी उत्तर संजय श्रीवास्तव ने कहा कि शासन के प्रावधानों के अनुसार वन तथा राजस्व भूमि का निर्धारण किया जा रहा है। राजस्व के नक्शों में विभाजक हरी लाईन केवल प्रशासनिक सुविधा से दर्ज की गई थी इसकी कोई वैधानिकता नही हैं। उन्होंने कहा कि पन्ना जिला विन्ध्य क्षेत्र का भाग था। इसमें रीवा, राजदरवार द्वारा 1937 में अधिसूचित वन अधिनियम लागू किया गया था। उस समय राजस्व, निस्तार तथा निजी पट्टों को छोडकर शेष पूरे वन क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित किया गया था। वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद इसमें भारतीय वन अधिनियम लागू किया गया जिसमें इस नोटिफिकेशन केा मान्यता दी गई। उन्होंने सिरस्वाहा बांध का उदाहरण देते हुए कहा कि बांध में 104 हेक्टेयर क्षेत्र में राजस्व लेण्ड रेवेन्युकोर्ट द्वारा 1969 में पट्टे जारी किए गए। जो वैध नही हैं। यह पूरा क्षेत्र पूर्व से ही आरक्षित वन घोषित है। उन्होंने कहा कि राजस्व अभिलेखों में भी प्रत्येक खसरे में वन का स्पष्ट उल्लेख किया जाए। जिससे विवाद की स्थिति पैदा न हो।

बैठक में वन राजस्व सीमा विवाद की तहसीलवार समीक्षा की गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि सभी एसडीएम शासन द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुरूप वन तथा राजस्व क्षेत्रों का निर्धारण करेंगे। संयुक्त रूप से कार्यवाही करके वन राजस्व अधिकारी सीमा निर्धारित करेंगे। सभी एसडीएम वन व्यवस्थापन अधिकारी के रूप में वन अधिनियम 1927 की धारा 4 के तहत वन भूमि के गठन की अधिसूचना जारी होने के बाद धारा 20 के तहत वन खण्ड के गठन के संबंध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करेंगे। बैठक में वन मण्डलाधिकारी दक्षिण आर.सी. विश्वकर्मा, सभी एसडीएम, सभी तहसीलदार तथा वन विभाग के अधिकारी उपस्थित रहे।

Share:

Leave a Comment