Enewsmp.com:. नोटबंदी के बाद देश में कई निकाय चुनाव हुए. ज्यादातर में फैसला बीजेपी के पक्ष में आया. पर सबसे बड़ा फैसला गुरुवार को आर्थिक राजधानी मुंबई से आया. पहली बार यहां अकेले चुनाव लड़ रही बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. पांच साल पहले शिवसेना के साथ गठबंधन में महज 31 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार 81 वार्डों पर अकेले कब्जा कर रही है. यही नहीं, पूरे महाराष्ट्र में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 में से 8 पालिकाओं पर अपना दबदबा बना लिया है. अकेले लड़ने का फायदा हुआ बीजेपी को बीएमसी यानी बृहन्मुंबई महानगरपालिका के लिए मंगलवार को वोट डाले गए थे. नतीजों ने साफ कर दिया है कि बीजेपी को बार-बार आंख दिखा रही शिवसेना भी अपने दम पर बीएमसी पर काबिज नहीं हो सकेगी. विधानसभा चुनावों की तरह शिवसेना ने अलग लड़कर मुंबई पर कब्जा चाहा पर इस फैसले में फायदा बीजेपी को हो गया. बीजेपी ने पिछली बार सिर्फ 69 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन गठबंधन न हो पाने पर इस बार उसने सभी सीटों पर दावेदारी पेश की. उद्धव ठाकरे को ले डूबी जिद शिवसेना भले ही 84 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी हो लेकिन अगर पिछले चुनावों से उसकी इस जीत की तुलना की जाए तो नतीजे पार्टी के लिए जश्न मनाने लायक तो कतई नहीं हैं. पिछली बार यानी 2012 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने 158 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 75 सीटें जीती थीं. इस बार सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद वो महज 84 सीटें जीत पाई. उद्धव बीजेपी को इस बार महज 60 सीट देने पर अड़े थे लेकिन उसने 81 सीटें जीत लीं. 2012 में बीजेपी ने 69 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 32 पर जीत हासिल की थी. इस बार वो 114 सीट मांग रही थी. जीत का क्या होगा सियासी असर बीएमसी में बीजेपी की रिकॉर्ड सीटें और पूरे महाराष्ट्र में उसका शानदार प्रदर्शन बताता है कि राज्य में उसकी पकड़ विधानसभा चुनाव की तरह मजबूत है. शिवसेना अगर सत्ता सुख चाहती है तो उसे बीएमसी में बीजेपी से हाथ मिलाना होगा और राज्य में भी फड़णवीस सरकार को समर्थन जारी रखना होगा. इसके अलावा बीजेपी पर एक सीमा के बाहर जाकर उसके हमले भी अब बीती बात हो जाएंगे. हां लेकिन अगर उद्धव अलग राह चुनते हैं तो न तो मुंबई में, न महाराष्ट्र में और न ही केंद्र की सत्ता में उनका कोई रोल रह जाएगा.