भोपाल. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मानसून सीजन के दौरान प्रदेश की नदियाें के उन हिस्सों में भी खनन पर राेक लगा दी है जिनका हिस्सा सूखा होता है। एनजीटी ने स्टेट लेवल एन्वायर्नमेंट इंपेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (शिया) और स्टेट लेवल एक्सपर्ट अप्रैजल कमेटी (सीएक) की दलील को खारिज कर दिया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि नदियों का हाई फ्लड लेवल हर साल बदलता है जिससे कई स्थान सूखे होते हैं, इसीलिए रेत खनन की मंजूरी दी जानी चाहिए। एडिशनल एडवोकेट जनरल की दलील पर एनजीटी ने कहा कि विकास की दर केवल जीडीपी से ही नहीं मापें, इसमें पर्यावरण का भी ध्यान रखें। सोमवार को अमरकांत मिश्रा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान शिया और सीएक की आेर से मामले की पैरवी कर रहे एडिशनल एडवोकेट जनरल पुरुषेंद्र कौरव ने एनजीटी के सामने जवाब प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि सिएक द्वारा नदियों के किनारे रेत खनन को लेकर नई पॉलिसी बनाई जा रही है। इसीलिए इस मामले में जवाब प्रस्तुत करने के लिए 15 दिनों का समय चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से वकील धर्मवीर शर्मा ने एनजीटी से पूरे मानसून सीजन में नदियों के किनारे रेत खनन पर लगी रोक को नहीं हटाने की अपील की। मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को है। सुनवाई में शिया व सीएक से सभी जवाबों के साथ उपस्थित होने को कहा है। नदी के किनारे रेत खनन के लिए नई पॉलिसी बनाने की तैयारी उधर, प्रदेश की क्लाइमेटिक कंडीशन के लिहाज से नदियों के किनारे रेत खनन के लिए नई पॉलिसी बनाने की तैयारी की जा रही है। शिया के सदस्यों के अनुसार प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के अाधार पर क्लाइमेटिक कंडिशन की स्टडी की जा रही है। पिछले कुछ सालों में यह देखने में आ रहा है कि प्रदेश के कई इलाकों में मानसून पूरी तरह सक्रिय नहीं हो रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए नदी के किनारे रेत खनन के लिए ऐसी पॉलिसी बनायी जा रही है जिससे रेत खनन का काम भी प्रभावित न हो और पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे।