भोपाल. व्यापमं घोटाले की जांच के लिए बनी एसआईटी के दूसरे सदस्य विजय रमन ने कई सवाल उठाए हैं। वे कहते हैं- यदि घोटाले के समय मैं व्यापमं का चेयरमैन होता तो अब तक इस्तीफा दे देता। उनका इशारा व्यापमं की पूर्व चेयरपर्सन रंजना चौधरी की ओर है, जो वर्तमान में कैट की सदस्य हैं। रजंना चौधरी से भी एसटीएफ ने व्यापमं घोटाले के संबंध में पूछताछ की है। खास बात यह है कि एसआईटी ने रंजना चौधरी को भी प्रीपीजी भर्ती परीक्षा में हुई गड़बड़ी के लिए आरोपी बनाए जाने की सिफारिश की थी लेकिन एसटीएफ ने ऐसा नहीं किया। हालांकि रमन ने यह भी स्पष्ट किया कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है। अफसर असरदार पदों पर जा बैठे... घोटाले के लिए अफसरों की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं है? जब घोटाला होता रहा तब व्यापमं का कामकाज देखने वाले अफसरों से इस्तीफे क्यों नहीं लिए गए? हैरत है कि वे तो और ज्यादा प्रभावशाली पदों पर जा बैठे। जब लॉ एंड आर्डर बिगड़ने की नैतिक जिम्मेदारी कलेक्टर और एसपी की होती है तो फिर जिन अफसरों के कार्यकाल में घोटाला हुआ, उनसे हिसाब क्यों नहीं लिया गया? घोटाले के लिए नेताओं को जिम्मेदार मानते हुए उनसे इस्तीफे की मांगने पर देशभर में हल्ला हुआ तो अफसरों के इस्तीफे पर चुप्पी क्यों? क्या वे सब दूध के धुले हुए हैं? घोटाला एकाएक सामने नहीं आया। व्हिसल ब्लोअर तो पांच साल पहले से शोर मचा रहे थे। कई शिकायतें हुई थीं। आश्चर्य है कि सरकार और अफसरों ने तभी इसकी सुध क्यों नहीं ली? यदि अफसरों को परीक्षा में इतने बड़े पैमाने पर हुई गड़बड़ी की खबर नहीं लगी तो ऐसा कहकर वे बच नहीं सकते। यह भी उनकी भी नाकामी है। आखिर आप इतने जिम्मेदार पदों पर बैठकर इतनी बड़ी गड़बड़ी से अंजान कैसे रह सकते हैं? कोई कैसे यकीन करे कि इतनी बड़ी गड़बड़ी हो रही थी तो अफसरों के पास कोई इंटेलीजेंस इनपुट नहीं था? किसी को तो इन शिकायतों के सत्यापन की हिम्मत दिखानी थी। ऐसा नहीं करने का सीधा मतलब था कि गड़बड़ी के लिए मौन स्वीकृति थी। व्यापमं का नाम बदलने पर भी रमन ने सवाल खड़े किए। दो साल बाद आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब इसका नाम बदलने की जरूरत पड़ रही है। जिस व्यापमं की वजह से सरकार की दुनिया भर में इतनी बदनामी हुई, उस संस्था को बंद ही कर देना चाहिए था। साहस भरा ऐसा फैसला वक्त की जरूरत थी। मगर वही संस्था फिर से परीक्षाएं लेगी। यह बताता है कि आप अब भी गंभीर नहीं हैं। कौन हैं विजय रमन: विजय रमन 1975 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के अफसर हैं। रिटायरमेंट से पहले वे प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सुरक्षा में तैनात एसपीजी में रहे। अस्सी के दशक में मध्यप्रदेश में डकैत पान सिंह तोमर के एनकाउंटर ऑपरेशन के प्रमुख रहे। उनका डकैतों में इतना खौफ था कि 1984 में जब वे भिंड एसपी थे, उस वक्त मलखान सिंह और फूलनदेवी ने सरेंडर की पहली शर्त यही रखी थी कि रमन की जगह किसी और को एसपी बनाया जाए। तब सरकार ने रमन को भिंड से वापस बुलाया था। बाद में फूलन व मलखान ने हथियार डाले। सौ.भा.