सीधी(ईन्यूज एमपी)टोंको-रोंको-ठोंको क्रांतिकारी मोर्चा के संयोजक उमेश तिवारी ने कॅरोना के कहर से हो रही मौत पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि 35, 40, 45, 50 और 55 की उम्र के अपने, अपनों तथा आसपास के कई लोगों को कॅरोना की दूसरी लहर में जिंदगी की जंग हारते हुए देखा और सुन रहा हूं। जीवन की यह वह उम्र होती है जो परिवार और समाज के लिए बहुत ही अहम होती है। अस्पताल, बेड, बेंटिलेटर, ऑक्सीजन, डाँक्टर की कमी के चलते मृतक के लाचार और बेबस परिजन आंखों के सामने तड़प तड़प कर अपनों को मरते देख रहे हैं। हालात यह है कि जिंदा रहते अस्पताल में जगह नहीं है मरने के बाद शमशान में जगह नहीं मिल रही है। उमेश तिवारी ने कहा कि कॅरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच लगभग 1 साल से अधिक का समय था लेकिन चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें हों किसी ने इस दरमियान नागरिकों का जीवन सुरक्षित करने को आवश्यक चिंता नहीं की। जवाबदेहों के ताली, थाली, संख, सायरन बजवाने के अंधविश्वास, ढकोसला और टोटके ने देश को ले डूबा। आखिर आदमी की ऐसी दुर्गति का जिम्मेदार कौन है? जिसमें अस्पताल, ऑक्सीजन, एंबुलेंस, दवाई डॉक्टर के अभाव में मरने के बाद ठीक से अंतिम संस्कार की बात तो दूर धार्मिक कर्मकांड के विपरीत कहीं रेत में शव को गाड़ दिया गया तो कहीं नदियों में बहा दिया गया। आखिर क्या इस हालात का अपराधी सिर्फ तंत्र है क्या नागरिक दोषी नहीं है? उमेश तिवारी ने कहा कि दरअसल हमने सरकार से कभी यह पूछना आवश्यक नहीं समझा कि हर गांव - शहर में सरकारी अस्पताल क्यों नहीं है, कितने मरीजों पर एक डॉक्टर, नर्स और एंबुलेंस हैं हमें तो सिर्फ इससे मतलब है कि सरकारें कहां-कहां मंदिर मस्जिद बनवा रही हैं। जब बात मंदिर मस्जिद की आती है तो हम किसी के कहने भर से मरने या मरने को तैयार हो जाते हैं लेकिन जब बात अस्पताल,स्कूल, कालेज की आती है तो कोई लोग यह नहीं पूछते कि सरकार इन्हें भी तो आपको ही बनवाना है इन में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, नर्स, शिक्षक है कि नहीं यह भी तो आपको ही देखना है। क्या इस सब के जिम्मेदार हम खुद नहीं हैं? आखिर हम सत्ता से सवाल कब पूछना शुरु करेंगे?