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Home मध्य प्रदेश उज्जैन के चौरासी महादेव मंदिर (74) मनोरथ पूर्ण करने वाले श्री राजस्थलेश्वर

उज्जैन के चौरासी महादेव मंदिर (74) मनोरथ पूर्ण करने वाले श्री राजस्थलेश्वर

उज्जैन - अनादि नगरी उज्जयिनी जहाँ भूतभावन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उत्तरवाहिनी पवित्र शिप्रा नदी, हरसिद्धि शक्तिपीठ, अभयप्रदाता अक्षयवट, सर्वकार्य सिद्ध करने वाले गणनायक चिन्तामण गणेश तथा शत्रुसंहारक काल भैरव की उपस्थिति के कारण ही वन्दनीय और स्मरणीय नहीं है। यह नगरी 84 महादेवों की उपस्थिति से भी प्रणम्य और प्रेरक है। ये चौरासी महादेव अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ धर्म की प्राण प्रतिष्ठा करते हुए आज भी लाखों-करोड़ों धर्मालुजनों को दर्शन-पूजन और स्मरण करने मात्र से असीम पुण्य लाभ का संयोग उपस्थित करते हैं। पुराणों में वर्णित इस उज्जयिनी के इस महाकालवन में प्रतिष्ठित इन चौरासी महादेवों के आध्यात्मिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ उनसे जुड़ी हुई कथाओं का वर्णन उल्लेखित है।
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता की तरह चौरासी महादेवों की इस संदेहनाशक यात्रा के चोहत्तरवें क्रम पर श्री राजस्थलेश्वर महादेव है, जिनका स्थान भागसीपुरा में स्थित है। सभी मनोरथों को पूरा करने वाले श्री राजस्थलेश्वर के सम्बन्ध में एक कथा इस प्रकार है कि-
एक बार विष्णुकल्प में जब पृथ्वी पर किसी भी राजा का राज्य नहीं था, तब तप में लीन राजा रिपुंजय को ब्रह्माजी ने राज्य करने को कहा। राजा ने अवंतिका में राज्य करना स्वीकारा। राजा रिपुंजय जब भलीभाँति राज्य करने लगे तो देवराज इन्द्र को उससे न केवलर् ईष्या हुई, बल्कि उनके राज्य कार्य में बाधा भी पहुँचाई, किन्तु राजा ने उसकी प्रत्येक बाधा का सामना किया तभी वहाँ सदाशिव अपने लाव-लश्कर और समस्त तीर्थों आदि के साथ आ गये। उस विराट् स्वरूप से भयभीत राजा रिपुंजय ने उनसे पूछा आप कौन है? तब सदाशिव ने स्वयम् को अवंतिका का राजा बताया। तब राजा रिपुंजय ने सदाशिव की विनीत भाव से प्रार्थना की तथा उन्हें इसी स्थान पर विराजने का निवेदन किया। राजा के रूप में विराजित सदाशिव यहाँ तभी से राजस्थलेश्वर के रूप में पुकारे जाने लगे। कहते हैं यहाँ पुराणोक्त विधि से पूजन आराधना करने पर प्राणियों को सभी मनोरथों की प्राप्ति होती है।

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